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پہلی قسط سرکار صدرالشریعہ علیہ الرحمہ کی ادبی خدمات۔آصف جمیل امجدی[انٹیاتھوک،گونڈہ]6306397662/9161943293

پہلی قسط
سرکار صدرالشریعہ علیہ الرحمہ کی ادبی خدمات۔

{عرس امجدی کے موقع پر خصوصی تحریر }

   [امجدی ڈائری] 

آصف جمیل امجدی
[انٹیاتھوک،گونڈہ]
6306397662/9161943293

مولانا امجد علی مشرقی یوپی کے ایک مردم خیز قصبہ گھوسی ضلع مئو میں 1300؁ھ مطابق 1882؁ء کو ایک دیندار گھرانے میں پیدا ہوئے۔ آپ کے والد ماجد مولانا حکیم جمال الدین کا شمار علاقے کے بڑے حکیموں میں ہوتا تھا۔ طبی مہارت اور ریاست عظمت گڑھ کے راجہ کے طبیب خاص ہونے کی وجہ سے ہر طرف آپ کا شہرہ تھا۔ اس عہد کے اجلہ علماء مولانا امجد علی اعظمی کو “صدر الشریعہ” جیسے گراں قدر لقب سے نوازا۔
آپ کی ابتدائی تعلیم آپ کے وطن گھوسی ہی کے مدرسہ ناصرالعلوم میں ہوئی۔ اعلی تعلیم کے لئے اپنے شیراہ ہند جونپور کا رخ کیا اور 1314؁ء میں مدرسہ حنفیہ جونپور میں داخلہ لیا۔ یہاں علوم شرقیہ وفنون دینیہ کے متلاشی دور دراز سے تشریف لاتے تھے۔ استاذالاساتذہ کی فیض رساں درس گاہ سے اس دور کے ماہرین علوم فارغ ہوئے۔
اس کی بعد صدرالشریعہ حضرت شاہ وصی احمد محدث سورتی کی خدمت میں مدرسۃ الحدیث پیلی بھیت میں حاضر ہوکر درس حدیث لیا۔ حضرت محدث سورتی نے بھی اپنی فراست ایمانی سے ان کی ذات میں پوشیدہ صلاحیتوں کو بھانپ لیا اور اس گوہر شب تاب کو قدرتی نگاہ سے دیکھا۔ علوم دینیہ کے چشمۂ فیاض سے خوب سیراب کیا اور 6/ذی الحجہ 1324؁ھ کو حضرت مولانا شاہ سلامت اللہ رامپوری قدس سرہٗ نے آپ کا امتحان لیا جس میں آپ کو نمایاں اور امتیازی کامیابی حاصل ہوئی۔ تعلیم سے فراغت کے بعد آپ اپنے استاذ محترم محدث سورتی کے مدرسۃ الحدیث میں 1327؁ھ تک تدریسی فرائض انجام دیتے رہے۔ اس کے بعد ایک سال تک پٹنہ میں مطب کرتے رہے۔ امام احمد رضا محدث بریلوی کو دارالعلوم منظر اسلام بریلوی کے لیے ایک ذی استعداد استاد کی ضرورت پیش آئی۔ حضرت محدث سورتی نے آپ کا نام پیش کیا اعلی حضرت کے طلب فرمانے پر پٹنہ سے مطب چھوڑ کر دارالعلوم منظر اسلام بریلی میں تدریس کا سلسلہ شروع کر دیا۔ جلد ہی اپنی استعداد، قابلیت، خدا داد حسن سلیقہ اور سعادت مندی سے امام احمد رضا محدث بریلوی کی نظر میں مقبول اور مورد الطاف خاص بن گئے۔
بریلی شریف میں آپ کا قیام 1329؁ھ مطابق 1911؁ء سے 1343؁ھ مطابق 1925؁ء تک رہا۔ 1343؁ھ مطابق 1925؁ء میں مولانا سید سلیمان اشرف صدر شعبۂ علوم اسلامیہ مسلم یونیورسٹی علی گڑھ، دارالعلوم معینیہ عثمانیہ اجمیر شریف میں صدرالمدرسین کے عہدے کا دعوت نامہ لے کر بریلی آۓ۔ یہاں آپ نے 1351؁ھ مطابق 1933؁ء تک فرائض تدریس انجام دئیے پھر 1363؁ھ میں مدرسہ مظہرالعلوم بنارس میں صدرالمدرسین ہوئے۔ لیکن وہاں کی فضا عقائد کے لحاظ سے سازگار نہ تھی اس لیے چند ہی ماہ رہ کر مستعفیٰ ہوگئے۔
آپ کا طرز تدریس نہایت دلنشین، دل آویز اور دل پذیر تھا۔ دوران تدریس مضامین کتاب کی ایسی واضح، شستہ اور جامع تقریر فرماتے کہ مضمون کتاب طلبہ کے ذہن میں اترتا چلا جاتا تھا۔ آپ کے تبحر علمی کا یہ عالم تھا کہ پورا درس نظامی آپ کو مستحضر تھا۔
امام احمد رضا محدث بریلوی کی عشق رسالت میں ڈوبی ہوئی اور ورع وتقوی سے شاداب و درخشندہ زندگی کی مسلسل دید کے بعد آپ نے روحانی رہنمائی کے لیے سلسلہ عالیہ قادریہ برکاتیہ میں انھیں کے دست حق پرست پر بیعت کی اور جلد ہی تمام سلاسل میں اجازت وخلافت سے نوازے گئے۔ صدرالشریعہ یوں تو سارے علوم و فنون کے ماہر تھے۔ لیکن سب سے خاص لگاؤ آپ کو فقہ سے تھا۔ اللہ زوجل آپ کی ذات گرامی میں تفقہ فی الدین ودیعت فرمایا تھا۔ صدرالشریعہ کو دیگر علوم و فنون کے علاوہ فقہ میں ایسا کمال حاصل تھا کہ فقہ کے جمیع ابواب کے تمام جزئیات مع ان کے تفصیلی دلائل کے مستحضر تھیں۔ انہیں خصوصیات کی بنا پر امام احمد رضا محدث بریلوی نے ایک موقع پر فرمایا:
“آپ کے یہاں موجودین میں تفقہ جس کا نام ہے وہ مولوی امجد علی صاحب میں زیادہ پائیے گا۔ وجہ یہی کی وہ استفتاء سنایا کرتے ہیں اور جو جواب دیتا ہوں لکھتے ہیں طبیعت اخاذ ہے طرز سے واقفیت ہو چلی ہے۔”
امام احمد رضا بریلوی نے حالات اور ضرورت دینی کے پیش نظر بریلی شریف میں پورے ملک ہندوستان کے لیے جس میں موجودہ پاکستان اور بنگلہ دیش بھی شامل تھا شرعی دارالقضا قائم فرمایا تھا۔ اس کے لیے تمام مشاہیر ہندو مفتی عصرمیں سے صدرالشریعہ کو احکام شرعی کے نفاذ اور مقدمات کے فیصلے کے واسطے قاضی شرع مقرر فرمایا تھا۔ امام احمد رضا محدث بریلوی کی بارگاہ میں آپ کو نہایت بلند مقام حاصل تھا یہی وجہ ہے کہ امام احمد رضا محدث بریلوی نے سوائے آپ کے کسی کو بھی حتیٰ کہ اپنے شہزادگان والا کو بھی اپنی بیعت لینے کا وکیل نہیں بنایا تھا۔ (بحوالہ بیسوی صدی میں امام احمد رضا)

[مضمون نگار روزنامہ شان سدھارتھ کے صحافی ہیں]

अल्लाह के बंदों तक दीन का पैगाम पहुंचाना और उन्हें अल्लाह से जोड़़ना ओलिया-ए-किराम का असल मिशन:अ़ल्लामा पीर सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी


आचाराणियों की ढाणी,उंद्रोड़ में हज़रत मख्दूम नूह सरवर अ़लैहिर्रहमा की याद में “जल्सा-ए-सरवरी” मनाया गया।

(उंद्रोड़,बाड़मेर,राजस्थान) 31/मई 2022 ईस्वी मंगलवार को जुम्ला मुसलमानाने अहले सुन्नत बिलखुसूस “सरवरी जमाअ़त” आचाराणियों की ढाणी,उंद्रोड़ की जानिब से हज़रत मख्दूम शाह लुत्फुल्लाह अल मअ़रूफ हज़रत मख्दूम नूह सरवर हालाई अ़लैहिर्रहमा की याद में “जल्सा-ए- सरवरी” इन्तिहाई अ़क़ीदत व एहतिराम के साथ मनाया गया-
इस जल्से की शुरूआ़त तिलावते कलामे रब्बानी से की गई, बादहू दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा के कुछ होनहार तल्बा ने यके बाद दीगरे लोगों के सामने नअ़त व मन्क़बत और दीनी व इस्लाही मौज़ूअ़ पर तक़ारीर पेश कीं,लोगों ने बच्चों की दाद व दहिश के ज़रिया खूब हौसला अफज़ाई की, जब कि खुसूसी नअ़त ख्वाँ की हैषियत से वासिफे शाहे हुदा हज़रत क़ारी अ़ताउर्रहमान साहब क़ादरी अनवारी जोधपुर ने भी नअ़त व मन्क़बत ख्वानी का शर्फ हासिल किया।

फिर रीवड़ी बाड़मेर से तशरीफ लाए हज़रत मौलाना अल्हाज मुहम्मद पठान साहब सिकन्दरी ने “नमाज़ और औलिया-ए-किराम की तअ़लीमात” के उ़न्वान पर बहुत ही नासिहाना और उ़म्दा खिताब किया।

आखिर में इस जलसे के खुसूसी खतीब व सरपरस्त नूरुल उ़़ल्मा पीरे तरीक़त रहबरे राहे शरीअ़त हज़रत अ़ल्लामा अल्हाज सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी मुहतमिम व शैखुल हदीष:दारुल उ़़लूम अनवारे मुस्तफा व सज्जादा नशीन:खानक़ाहे आ़लिया बुखारिया सेहलाऊ शरीफ ने कम वक़्तों मे इन्तिहाई जामेअ़, नसीहतों से पुर और दुआ़ईया कलिमात से नवाज़ा।
आप ने अपने खिताब में फरमाया कि “बिला शुब्हा किसी भी बुज़ुर्ग की याद मनाने और उन की रुह को ईसाले षवाब व बुलंदी-ए-दरजात की दुआ़ करने के लिए उन के मुहिब्बीन [चाहने वालों] व मुरीदीन और मुअ़तक़िदीन वग़ैरह का उन के नाम की जानिब निस्बत करते हुए नेक मज्लिसों का इन्इक़ाद करना व सजाना और एैसी मज्लिसों में ज़िक्रुल्लाह,नअ़्त ख्वानी और क़ुरआने पाक की तिलावत, उ़ल्मा-ए-दीन के ज़रिया वअ़ज़ व नसीहत और अल्लाह व रसूल के अहकाम व फरमूदात और बुज़ुर्गाने दीन के हालात व खिदमात पर मुश्तमिल बयानात और इस के एलावा दोसरे नेक काम कर के उन को जो ईसाले षवाब किया जाता है वोह जाइज़ व मुस्तहसन है…क्यो कि इस तरह से बुज़ुर्गाने दीन की याद गीरी करने का असल मक़्सद उन को ईसाले षवाब करने के साथ एैसी नेक मज्लिसों के ज़रिया लोगों तक अल्लाह व रसूल और बुज़ुर्गाने दीन के पैग़ामात को लोगों तक पहुंचाना और लोगों को दीन व शरीअ़त के क़रीब करना,और लोगों के अंदर दीनी जज़्बा बेदार करना होता है।
आप ने अपने खिताब के दौरान क़ौम को मुखातब कर के इख्तिसार के साथ हज़रत मख्दूम नूह सरवर हालाई अ़लैहिर्रहमा के हालाते ज़िंदगी को भी कुछ इस तरह बयान फरमाया कि “आप हज़रात ने जिस बुज़ुर्ग की याद में इस महफिल का इन्इक़ाद किया है वोह हज़रत मख्दूम नूह सरवर हालाई अ़लैहिर्रहमा हैं,जिन का शुमार बिला शुब्हा सरज़मीने सिंध के मशहूर व मअरूफ और बुज़ुर्ग सूफिया में होता है-
आप का नामे नामी इस्मे ग्रामी शाह लुत्फुल्लाह और लक़ब मख्दूम नूह सरवर और वालिदे ग्रामी का नाम हज़रत नेअ़मतुल्लाह शाह है-आप का सिलसिला-ए-नसब हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रदियल्लाहु तआ़ला अ़न्हु से जा मिलता है-आप के जद्दे आला शैख अबू बकर बूबक ज़िला दादू के मक़ाम पर आबाद हुए-
हज़रत मख्दूम नूह सरवर अ़लैहिर्रहमा की विलादते बा सआ़दत[पैदाइश] 27 रमज़ानुल मुबारक 911 हिजरी बरोज़ जुम्आ़ मुबारका सूबा-ए-सिंध के मौजूदा मटियारी ज़िला के शहर व तअ़ल्लुक़ा [तहसील] हाला में हुई-
अल्लाह तआ़ला ने आप को इल्मे लदुन्नी से मालामाल फरमाया था,आप का शुमार सिंध के सरकरदा औलिया-ए-किराम में होता है-आप हर शख्स से उस के हस्बे हाल गुफ्तगू फरमाते और बर महल व बरजस्ता क़ुरआनी आयतों से इस्तिदलाल फरमाते-क़ुरआन मजीद के मआ़नी व मतालिब [तौज़ीह व तशरीह] इस अंदाज़ से बयान फरमाते कि बड़े बड़े उ़़ल्मा भी दम ब खुद [हैरान] रह जाते-बुज़ुर्गाने दीन के हालात और उन से मुतअ़ल्लिक़ बातों का ज़िक्र एैसे पुर ताषीर अंदाज़ में करते कि सामईन को रुजूअ़ इलल्लाह की दौलत हासिल हो जाती-
आप की करामतैं बचपन से ही ज़ाहिर होने लगीं थीं जिन से आप का मादर ज़ाद [पैदाइशी] वली होना षाबित हो गया था,…बुज़ुर्गों से मन्क़ूल है कि पैदाइश के सातवीं दिन क़रीब की मस्जिद से अज़ान की आवाज़ आई, उस वक्त आप झूले में आराम कर रहे थे, जब अज़ान खतम हुई तो आप ने फसीह व बलीग़ अ़रबी ज़बान में कहा نعم لااله الاالله ولا نعبد الااياه مخلصين له الدين
ऐक मरतबा हुज़ूर ग़ौषे पाक रदियल्लाहु तआ़ला अ़न्हु की औलाद में से ऐक बुज़ुर्ग आप के पास आए और कहा कि मैं आप को इजाज़त व खिलाफत देने और फाइदा पहुंचाने के लिए आया हूं, और मैं इल्मे कीमिया भी जानता हूं अगर आप कहें तो आप को इल्मे कीमिया भी सिखा सकता हूं, जो शायद किसी वक़्त आप के काम आए-आप ने जवाब में फरमाया: कि जिस दिन से मैं बारगाहे नबवी से मुशर्रफ हुवा हूं दुनिया की हविस दिल से निकल गई है,यह कह कर आप ने ऐक दिरहम मंगवाया और उस पर मिट्टी मल दी तो वह बिलकुल खरा सोना बन गया”-
हज़रत मख्दूम नूह सरवर अ़लैहिर्हमा का विसाल 87 साल की उ़म्र में 27 ज़ुलक़अ़दा 988 हिजरी ब मुताबिक़ 02 जनवरी 1581 ईस्वी को हुवा-

अब्रे रहमत उन की मरक़द पर गोहर बारी करे।
हश्र तक शाने करीमी नाज़ बरदारी करे।

आप का मज़ारे पुर अनवार हाला शरीफ में ज़ियारत गाहे आ़म व खास है।
हज़रत मख्दूम नूह सरवर अ़लैहिर्हमा की हयात व खिदमात पर इस तरह बिल इख्तिसार रोशनी डालते हुए आप ने सभी शुरका-ए-जल्सा को मुखातब कर के फरमाया कि “दुनिया में जितने भी अल्लाह के नेक बंदे या औलियाअल्लाह गुज़रे हैं उन का असल मिशन और मक़सद अल्लाह के बंदों को अल्लाह से जोड़ना,दीन और शरीअ़ते इस्लामिया पर लोगों को कारबंद होने की ताकीद व तल्क़ीन करना ही रहा है-इस लिए हम सभी लोगों को चाहिए कि हम बुज़ुर्गाने दीन की तअ़लीमात पर अ़मल पैरा हों,यही बुज़ुर्गाने दीन के नामों से मज्लिसों के इन्इक़ाद का असल मक़्सद व हदफ है”-
इस दीनी प्रोग्राम में खुसूसियत के साथ यह हज़रात शरीक हुए।
★हज़रत मौलाना मुहम्मद शमीम अहमद साहब नूरी मिस्बाही नाज़िमे तअ़लीमात:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ,☆हज़रत मौलाना बाक़िर हुसैन साहब क़ादरी बरकाती अनवारी,★मौलाना अ़ताउर्हमान साहब क़ादरी अनवारी नाज़िमे आला मदरसा क़ादरिया फैज़े जीलानी मेकरन वाला,★मौलाना फिरोज़ रज़ा साहब रतनपुरी आचारियों की ढाणी,☆मौलाना मुहम्मद हमज़ा क़ादरी अनवारी सोलंकिया,★क़ारी अरबाब अ़ली क़ादरी अनवारी, ☆मौलाना मुहम्मद उ़र्स सिकन्दरी, ★मौलाना फतेह मुहम्मद साहब सरपंच,☆मौलाना निहालुद्दीन साहब अनवारी आसाड़ी,★मास्टर शेर मुहम्मद खान साहब☆जनाब मुहम्मद उ़र्स खान,★जनाब अ:लतीफ खान,☆जनाब मुहम्मद अमीन खान,★जनाब जमाल खान,☆जनाब ग़ुलाम खान,☆जनाब वरियाम खान वग़ैरहुम।

सलातो सलाम और नूरुल उ़ल्मा हज़रत अ़ल्लामा अल्हाज पीर सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी की दुआ़ पर यह जल्सा समाप्त हुवा।

रिपोर्टर:(मौलाना)हबीबुल्लाह क़ादरी अनवारी।
आफिस इंचार्ज:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा दरगाह हज़रत पीर सय्यद हाजी आ़ली शाह बुखारी,पच्छमाई नगर,सेहलाऊ शरीफ,पो:गरडिया [तह:रामसर] ज़िला:बाड़मेर [राज:]

بندگان خدا کو دین وشریعت کا پیغام پہنچانا اور انہیں اللہ سے جوڑنا اولیاء اللہ کا اصل مشن:سیدنوراللہ شاہ بخاری

آچارانیوں کی ڈھانی،اندروڑ میں حضرت مخدوم نوح سرور کی یاد میں جلسہ

(باڑمیر،راجستھان[پریس ریلیز])یقیناً کسی بھی بزرگ کی یاد منانے اور ان کو ایصالِ ثواب وبلندئِ درجات کی دعا کرنے کے لئے ان کے مُحبّین ومریدین اور معتقدین وغیرہ کا ان کے نام سے منسوب محافل ومجالس کا انعقاد کرنا اور ایسی مجالس میں ذکرُاللّٰہ ، نعت خوانی اورقرآنِ پاک کی تلاوت،علمائے کرام کے ذریعہ وعظ ونصیحت اور اللہ ورسول کے احکام وفرمودات اور بزرگان دین کے احوال پر مشتمل بیانات اور اس کے علاوہ دیگر نیک کام کر کے ان کو جو ایصالِ ثواب کیا جاتاہے وہ بلاشبہ جائز و مستحسن ہے-
کیونکہ اس طرح سے بزرگان دین کی یادگیری کرنے کا اصل مقصد ان کو ایصال ثواب کرنے کے ساتھ ایسی مجالس خیر کے ذریعہ لوگوں تک اللہ ورسول اور بزرگان دین کے پیغامات کو پہنچانا اور لوگوں کو دین وشریعت کے قریب کرنا،اور لوگوں کے اندر دینی جذبہ بیدار کرنا ہوتاہے-
مذکورہ خیالات کا اظہار 31 مئی 2022 عیسوی سہ شنبہ کو آچارانیوں کی ڈھانی،اندروڑ،باڑمیر میں سروری جماعت وجملہ مسلمانانِ اہلسنت کی طرف سے حضرت مخدوم شاہ لطف اللہ المعروف مخدوم نوح سرور ہالائی علیہ الرحمہ کی یاد میں منعقدہ عظیم الشان اجلاس میں مغربی راجستھان کی عظیم وممتاز اور علاقۂ تھار کی مرکزی دینی،تربیتی وعصری درسگاہ “دارالعلوم انوارمصطفیٰ” کے مہتمم وشیخ الحدیث اور “خانقاہ عالیہ بخاریہ” سہلاؤشریف کے سجادہ نشین نورالعلماء شیخ طریقت حضرت علامہ الحاج سیدنوراللہ شاہ بخاری مدظلہ العالی نے کیا-
ساتھ ہی ساتھ آپ نے بالاختصار حضرت مخدوم نوح سرور ہالائی علیہ الرحمہ کے حالات زندگی کو بھی کچھ اس طرح بیان فرمایا کہ آپ حضرات نے جس بزرگ کی یاد میں اس محفل کا انعقاد کیا ہے وہ حضرت مخدوم نوح سرور ہالائی علیہ الرحمہ ہیں جن کا شمار بلاشبہ ارضِ سندھ کے مشہور وبزرگ صوفیاء میں ہوتا ہے۔
آپ کااسمِ گرامی لطف اللہ اور لقب مخدوم نوح سرور اور والد کا نام حضرت نعمت اللہ شاہ ہے۔آپ کا سلسلۂ نسب حضرت ابو بکر صدیق رضی اللہ تعالیٰ عنہ سے جاملتا ہے۔آپ کے جدِ اعلیٰ شیخ ابوبکر بوبک (ضلع دادو) کے مقام پر آباد ہوئے۔
حضرت مخدوم نوح سرور کی ولادتِ باسعادت 27 رمضان المبارک 911ھ بروز جمعہ مبارکہ صوبۂ سندھ کے موجودہ مٹیاری ضلع کے شہر وتعلقہ ہالا میں ہوئی۔
اللہ تعالیٰ نے آپ کو علمِ لدنی سے مالا مال فرمایا تھا۔ آپ کا شمار سندھ کے سرکردہ اولیاء کرام میں ہوتا ہے۔ ہر شخص سے اس کے حسبِ حال خود ہی گفتگوکا آغاز فرماتے اور برمحل قرآنی آیات سے استدلال فرماتے۔قرآن مجید کے معانی و مطالب اس انداز سے بیان فرماتے کہ جید علماء کرام بھی دم بخود رہ جاتے۔بزرگانِ دین کے احوال و آثار کا ذکر ایسے پر تاثیر انداز میں فرماتے کہ سامعین کو رجوع الی اللہ کی دولت حاصل ہوجاتی۔
آپ کی کرامات بچپن ہی سے ظاہر ہوگئی تھیں جن سے آپ کا مادر زاد ولی ہونا ثابت ہوگیا۔ منقول ہے کہ پیدائش کے ساتویں روز قریبی مسجد سے اذان کی آواز آئی، آپ جھولے میں آرام کررہے تھے، جب اذان ختم ہوئی آپ نے بزبانِ فصیح کہا: نعم : لا الہ الا اللہ ولا نعبد الا ایاہ مخلصین لہ الدین

ایک مرتبہ حضور غوثِ پاک رضی اللہ تعالیٰ عنہ کی اولاد میں سے ایک صاحب حاضرِ خدمت ہوئےاور کہا کہ میں آپ کو خلافت دینے اور فائدہ پہنچانے کے لئے آیا ہوں، میں علم کیمیا بھی جانتا ہوں اگر آپ کہیں تو میں آپ کو کیمیا بھی سیکھا سکتا ہوں، جو شاید کسی وقت آپ کے کام آئے۔ آپ نے فرمایا: جس روز سے بارگاہِ نبویﷺ سے مشرف ہوا ہوں دنیا کی ہوس دل سے نکل گئی ہے، یہ کہ کر ایک درہم منگوایااس پر مٹی ملی تو وہ بالکل کھرا سونا بن گیا۔

مخدوم نوح سرور علیہ الرحمہ ستاسی سال کی عمر میں27 ذو القعدہ 988ھ/بمطابق 2 جنوری 1581ء کو واصل الی اللہ ہوئے۔ آپ کا مزارِ پرانوارہالہ کندی میں زیارت گاہ خاص و عام ہے۔
حضرت نوح سرور علیہ الرحمہ کی حیات وخدمات پر بالاختصار روشنی ڈالنے کے ساتھ آپ نے سبھی شرکاء جلسہ کو مخاطب کر کے فرمایا کہ دنیا میں جتنے بھی اللہ کے نیک بندے یا اولیاءاللہ گذرے ہیں ان کا اصل مقصد اور مشن بندگان خدا کو اللہ سے جوڑنا،دین اور شریعت کے احکام کو پہنچانا اور شریعت اسلامیہ پر لوگوں کو کاربند ہونے کی تاکید وتلقین کرنا ہی رہا ہے- اس لیے ہم سبھی لوگوں کو چاہیے کہ ہم بزرگان دین کی تعلیمات پر عمل پیرا ہوں یہی بزرگان دین کے ناموں سے محافل کے انعقاد کا اصل مقصد بھی ہے-
آپ کے خطاب سے قبل ریوڑی، باڑمیر کے حضرت مولانا محمد پٹھان صاحب سکندری نے “نماز اور اولیائے کرام” کے عنوان پر بہت ہی ناصحانہ اور تفصیلی وخصوصی خطاب کیا جب کہ خصوصی نعت ومنقبت خوانی کاشرف مداح رسول حضرت قاری عطاؤالرحمٰن صاحب قادری انواری جودھپورنے حاصل کیا-نظامت کے فرائض طلیق اللسان حضرت مولانا محمدحسین صاحب قادری انواری نگراں شاخہائے دارالعلوم انوارمصطفیٰ نے بحسن وخوبی انجام دیا-
اس دینی پروگرام میں خصوصیت کے ساتھ مندرجہ ذیل علمائے کرام شریک ہوئے-ادیب شہیر حضرت مولانا محمدشمیم احمدصاحب نوری مصباحی،ناظم تعلیمات:دارالعلوم انوارمصطفیٰ سہلاؤشریف،مولانا باقرحسین صاحب قادری انواری،مولانافیروز رضارتن پوری، مولاناعطاؤالرحمٰن صاحب قادری سمیجا بیجل کاپار،مولانا محمدحمزہ قادری نوہڑی سولنکیا،قاری ارباب علی قادری انواری،مولانا سرپنچ فتح محمد انواری،مولانانہال الدین انواری آساڑی،مولانا محمدعرس سکندی انواری وغیرہم-
صلوٰة وسلام اور نورالعلماء حضرت علامہ پیرسیدنوراللہ شاہ بخاری کی دعا پر جلسہ اختتام پزیر ہوا-

رپورٹ:حبیب اللہ قادری انواری
آفس انچارج:دارالعلوم انوارمصطفیٰ سہلاؤشریف،باڑمیر[راجستھان]

सेहलाऊ शरीफ में “जश्ने इफ्तिताहे बुखारी” मनाया गया।

हर साल की तरह इसाल भी इलाक़ा-ए-थार की मरकज़ी दर्सगाह “दारुल उ़़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ,गरडिया,ज़िला: बाड़मेर,राजस्थान” की अ़ज़ीमुश्शान “ग़रीब नवाज़ मस्जिद” में 26 शव्वाल 1443 हिजरी/28 मई 2022 ईस्वी शनिवार को इन्तिहाई अ़क़ीदत व एहतिराम के साथ “जश्ने इफ्तिताहे बुखारी शरीफ” का प्रोग्राम नूरुल उ़़ल्मा पीरे तरीक़त हज़रत अ़ल्लामा अल्हाज सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी की क़यादत व सरपरस्ती में हुवा।
प्रोग्राम की शुरूआ़त तिलावते कलामे रब्बाने से हुई।

बादहु दारुल उ़़लूम के कई तल्बा ने बारगाहे रसूल صلی اللہ علیہ وسلمमें नअ़त ख्वानी का शर्फ हासिल किया।

फिर दारुल के मुदर्रिस हज़रत मौलाना खैर मुहम्मद साहब क़ादरी अनवारी ने इस प्रोग्राम में तशरीफ लाए सभी हज़रात का दा:उ़: के ज़िम्मेदारान, स्टाफ और तल्बा की तरफ से शुक्रिया अदा करने के साथ शहज़ादा-ए- मुफ्ती-ए-थार हज़रत मौलाना अ़ब्दुल मुस्तफा साहब नईमी सोहरवर्दी नाज़िमे आला: दारुल उ़़लूम अनवारे ग़ौषिया सेड़़वा को दावते खिताब दिया…आप ने हज़रत इमाम बुखारी की सीरत के मुख्तलिफ पहलुओं पर रोशनी डालते हुए बुखारी शरीफ की जमअ़ व तरतीब की कैफियत वग़ैरह पर भी रोशनी डाली और आप ने दौराने खिताब कहा कि हज़रत इमाम बुखारी इल्म व फन में यकताए रोज़गार थे,अल्लाह तआ़ला ने आप को उ़लूमे हदीष व क़ुरआन के साथ दीगर बहुत सारे उ़़लूम व फुनून से नवाज़ा था, आप जहाँ ज़ुह्द व तक़वा के पैकर थे वहीं तवाज़ुअ़ व इन्किसारी उन का वतीरा था,ज़ाहिर व बातिन में खुदा से बहुत डरते थे,मुश्तबहात से भी बचते,ग़ीबत और दोसरे गुनाहों से इज्तिनाब करते और लोगों के हुक़ूक़ का पूरा पूरा खयाल करते,हासिले कलाम यह कि हज़रत इमामे बुखारी बेहद इबादत गुज़ार और शब बेदार थे,आप का हर क़ौल व फेअ़्ल व अ़मल हुज़ूर नबी-ए-अकरम صلی اللہ علیہ وسلم के क़ौल व फेअ़्ल का मज़हर था-

फिर दरजा-ए-फज़ीलत के एक तालिबे इल्म ने बहुत ही वालिहाना अंदाज़ में नअ़ते रसूल صلی اللہ علیہ وسلم पेश किया।

बादहु क़ाइदे क़ौम व मिल्लत ताजुल उ़़ल्मा हज़रत अ़ल्लामा व मौलाना ताजुद्दीन अहमद साहब सोहरवर्दी मुहतमिम व शैखुल हदीष:दारुल उ़़लूम फैज़े ग़ौषिया खारची ने तल्बा-ए-फज़ीलत को “इफ्तिताहे बुखारी शरीफ” की इस तक़रीब में बुखारी शरीफ की पहली हदीष का दर्स देते हुए कहा कि इल्मे क़ुरआन व हदीष तमाम दीनी उ़़लूम की असल हैं,इस लिए हम सभी लोगों को चाहिए कि हम अपने बच्चों के उ़़लूमे क़ुरआन व हदीष की तअ़लीम के हुसूल पर खुसूसी धयान दें,फिर आप ने बुखारी शरीफ पढ़़ने की फज़ीलत पर भी शान्दार गुफ्तगू की और फरमाया कि बुखारी शरीफ पढ़ने से अल्लाह की रहमतों का नुज़ूल होता है, पढ़़ने वाले के चेहरे पर नूरानियत और शादाबी रहती है,इस की क़िरात व दर्स व तदरीस से मुश्किलात दूर होती हैं…आप ने भी हज़रत इमाम बुखारी अ़लैहिर्रहमा की सीरत व सवानेह और बुखारी शरीफ की जमअ़ व तरतीब की कैफियत और इल्मे हदीष की अ़ज़मत व फज़ीलत और उस की तारीख पर सैर हासिले बहष पेश की…सिलसिला-ए-खिताब को जारी रखते हुए आप ने फरमाया कि हज़रत इमाम बुखारी को रसूलुल्लाह صلی اللہ علیہ وسلم से बे पनाह मुहब्बत थी और वोह इस से ज़ाहिर है कि अमीरुल मोमिनीन फिल हदीष हज़रत इमाम बुखारी ने अपनी पूरी ज़िंदगी इत्तिबाए सुन्नत और अहादीषे नबविया की तफतीश व तहक़ीक़ और फिर दर्स व तदरीस व नश्र व इशाअ़त में सर्फ कर दी…आप का क़ुव्वते हाफिज़ा निराला और ग़ैर मअ़मूली था,आप को “जबलुल हिफ्ज़” यानी याद दाश्त का पहाड़ कहा जाता था,उस्ताद से जो हदीष सुनते या किसी किताब पर नज़र डालते तो वह आप के हाफिज़ा में महफूज़ हो जाती थी,इल्मे हदीष के साथ आप दोसरे बहुत से उ़़लूम व फुनून के माहिर थे,…साथ ही साथ आप ने दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा की उ़़म्दा व बेहतरीन कार कर्दगी और इस की तअ़मीर व तरक़्क़ी पर दा:उ़:अनवारे मुस्तफा के मुहतमिम व शैखुल हदीष नूरुल उ़ल्मा पीरे तरीक़त रहबरे राहे शरीअ़त हज़रत अ़ल्लामा अल्हाज सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी مدظلہ العالی को मुबारकबाद पेश करने के साथ अपनी दुआ़ओं और हौसला अफज़ा कलिमात से नवाज़ा…साथ ही साथ आप ने क़ौम को खिताब करते हुए कहा कि आप हज़रात अपने बच्चों के दीनी तअ़लीम के साथ अ़सरी व दुनियावी तअ़लीम की तहसील पर खूब खूब तवज्जोह दें क्यों कि तअ़लीम के बगैर सहीह मअ़नों में तरक़्क़ी ना मुम्मकिन है, गोया आप ने दीनी तअ़लीम के साथ दुनियावी तअ़लीम की तहसील पर ज़ोर दिया-
सलात व सलाम, इज्तिमाई फातिहा ख्वानी और नूरुल उ़ल्मा हज़रत अ़ल्लामा सय्यद पीर नूरुल्लाह शाह बुखारी की दुआ़ पर यह मज्लिसे सईद इख्तिताम पज़ीर हुई।

रिपोर्ट:मुहम्नद शमीम अहमद नूरी मिस्बाही
खादिम:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा पच्छमाई नगर, सेहलाऊ शरीफ,पो: गरडिया,तह:रामसर,ज़िला:बाड़मेर (राजस्थान)

ناسازگار حالات میں نیکی :ڈاکٹر محمد رضاء المصطفی قادری کڑیانوالہ گجرات29-05-2022۔اتوار00923444650892واٹس آپ نمبر

نیکی ،خیر اور تقویٰ والے کاموں میں مشغول رہنا بہت ہی سعادت کی بات ہے ۔کچھ افراد کو اللہ تعالیٰ کی جانب سے نیکی سازگار ماحول عطا فرمایا جاتا ہے ، یہ شرف خصوصی طور پر خاندان اہل بیت اطہار علیھم الرضوان کو حاصل رہا ہے ۔مثلآ سیدنا امام حسن مجتبیٰ رضی اللہ تعالیٰ عنہ ،سیدنا امام حسین رضی اللہ تعالی عنہ کو نیکی اور تقویٰ والا ماحول بچپن سے ہی میسر آیا ۔اغوش نبوت میں پرورش پائی ۔۔۔۔،وحی الہیٰ کا نزول اپنی آنکھوں سے دیکھا ، اس گھر میں ملائکہ کا نزول ہوتا تھا ،

یہ حضرات حضور خاتم النبیین صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم کی عبادت و ریاضت اور مجاہدات کے چشم دید گواہ ہیں ۔ان پاک فطرت اور پاک طینت حضرات کے لئے قدرت نے یہ پاکیزہ اور مقدس گہوارہ منتخب فرمایا ۔ سبحان اللہ کیا مقدر پایا ہے، حضرات حسنین کریمین طیبین رضی اللہ تعالی عنھما نے ۔ان قدسی صفت حضرات کی گرد راہ پہ ہماری جانیں قربان ہوں ۔
ان کی شان وراء الوراء ہے ۔درحقیقت یہ روز ازل سے ہی اللہ کریم کی عطائیں اور نوازشات ہیں ، جو اس مقدس گھرانے کا حصہ ہیں ۔

صحابہ کرام علیہم الرضوان کی سیرت کو اس پہلو سے دیکھیں کہ ان کو نیکی اور تقویٰ کا سازگار ماحول میسر نہیں آیا۔قبول اسلام پہ مارا،پیٹا گیا ، اذیتوں،تکالیف ،مصائب و آ لام کا ایک لامتناہی سلسلہ تھا جسے انھوں نے بخوشی قبول کیا ،اپنی جان،مال ،اولاد ،خاندان ،وطن کسی چیز کی قربانی سے بھی دریغ نہیں کیا۔چھپ چھپ کر قرآن مجید اور نمازیں پڑھتے تھے،ایک فیز ایسا بھی گزرا ہے کہ کھل کھلا کر نیکی بھی نہیں کر سکتے تھے۔صحابہ کرام علیہم الرضوان نے ناساز گار اور سخت حالات میں نیکی اور تقویٰ والی زندگی گزاری ہے۔ اس لحاظ سے ان کو بھی اللہ تعالیٰ کی طرف سے “رضی اللہ عنھم ورضوا عنہ” کا پروانہ ملا ہے۔یعنی اللہ تعالی ان سے ہمیشہ کے لیے راضی ہو گیا اور وہ اللہ تعالی سے راضی ہو گئے۔

انسان کی طبعیت و مزاج اور عادات تیس سال کی عمر تک پختہ ہوچکی ہوتی ہیں۔انسان اپنی عادات و اطوار میں پختہ ہوچکا ہوتا ہے ۔عادت بدلنا دنیا کے مشکل ترین کاموں میں سے ایک ہے۔اج دنیا میں ہزاروں موٹیویشنل سپیکر ہیں جو اس نہج پر کام کر رہے ہیں مگر پھر بھی لوگ بری خصلتوں کو ترک نہیں کرپاتے کہ عادت بدلنا بہت ہی مشکل کام ہے ۔مثل مشہور ہے کہ”جبل گردنند جبلت نہ گردنند”

۔صحابہ کرام علیہم الرضوان وہ ہستیاں ہیں کہ جیسے جیسے اللہ تعالی کے احکام آتے گئے، وہ اپنی عادات و اطوار کو ترک کرتے گئے ،حتیٰ کہ اللہ تعالی کے رنگ میں مکمل رنگے گئے ۔کوئی ایک صحابی بھی اس معاملے میں پیچھے نہیں رہے۔صِبْغَةَ اللّٰهِۚ-وَ مَنْ اَحْسَنُ مِنَ اللّٰهِ صِبْغَةً٘-وَّ نَحْنُ لَهٗ عٰبِدُوْنَ۔

ان حضرات نے اپنی طبعیت و مزاج کو مکمل بدل کر اور ایک آئیڈیل انسان بن کر دنیا کو دکھایا ہے کہ یوں بدلتے ہیں بدلنے والے۔ اللہ تعالیٰ کے احکامات کی تعمیل جیسے ایک نوعمر صحابی نے کی ،ویسے ہی ایک بڑی عمر کے صحابی نے بھی کی ۔
اپنی عادات و خصائل کو جیسے چھوٹی عمر کے صحابہ نے بدلا، اسی جذبہ کے ساتھ بڑی عمر کے صحابہ کرام نے بھی اپنے آپ کو بدلا ۔یہ بہت ہی عظیم قربانی ہے ،ان نفوسِ قدسیہ کے اخلاص و للہیت کی برکت ہے کہ چمن اسلام ہرا بھرا ہے ۔

خاندان اہل بیت اطہار علیھم الرضوان کی شان وراء الوراء ہے اسی طرح صحابہ کرام علیہم الرضوان کی عظمت و شان بھی ارفع و اعلیٰ ہے۔ اہلسنت و جماعت کا مزاج دونوں سے سچی محبت و عقیدت کا ہے ۔خدا تعالی ہم کو ان کے نقش قدم کی کامل اتباع نصیب فرمائے ۔

اہلِ سنّت کا ہے بیڑا پار اَصحابِ حضور

نجم ہیں اور ناؤ ہے عترت رسول اللہ کی

صلی اللہ تعالی علیہ وآلہ وصحبہ وبارک وسلم تسلیما کثیرا کثیرا

ڈاکٹر محمد رضا المصطفی قادری کڑیانوالہ گجرات
29-05-2022۔اتوار
00923444650892واٹس آپ نمبر

جملہ علوم دینیہ کی اصل قرآن وحدیث،قرآن کے بعد صحیح بخاری کادرجہ- سہلاؤشریف میں افتتاح بخاری شریف، رپورٹ:محمدشمیم احمدنوری مصباحی ناظم تعلیمات:دارالعلوم انوارمصطفیٰ سہلاؤشریف،باڑمیر[راجستھان]


سہلاؤشریف میں افتتاح بخاری شریف، مولاناتاج محمدسہروردی کاخطاب

حسب دستور سابق مغربی راجستھان کی عظیم وممتاز دینی،تربیتی وعصری درسگاہ “دارالعلوم انوارمصطفیٰ سہلاؤ شریف،باڑمیر،راجستھان” کی عظیم الشان “غریب نوازمسجد” میں 26 شوال المکرم 1443 ہجری مطابق 28 مئی 2022 عیسوی بروز شنبہ انتہائی عقیدت واحترام کے ساتھ “جشن افتتاح بخاری شریف” کا پروگرام منعقد ہوا-
اس پروگرام کی شروعات تلاوت کلام ربانی سے کی گئی،بعدہ یکے بعد دیگرے دارالعلوم کے کئی خوش گلو طلبہ نے بارگاہ رسالت مآب میں نعت خوانی کاشرف حاصل کیا-پھر دارالعلوم کے استاذ حضرت مولاناخیر محمدصاحب قادری انواری نے بالاختصار درس بخاری کی عظمت واہمیت پر روشنی ڈالنے کے ساتھ اس پروگرام میں تشریف لائے سبھی حضرات کا شکریہ ادا کیا اور شہزادۂ مفتئِ تھار حضرت مولانا عبدالمصطفیٰ صاحب نعیمی سہروردی ناظم اعلیٰ دارالعلوم انوارغوثیہ سیڑوا کو دعوت خطاب دیا-آپ نے اپنے خطاب میں حضرت امام بخاری کی سیرت کے مختلف پہلوؤں پر روشنی ڈالتے ہوئے بخاری شریف کی جمع وترتیب کی کیفیت وغیرہ پر بھی عمدہ اورمعلوماتی خطاب کیا-
پھر آخر میں قائد قوم وملت تاج العلماء حضرت مولاناالحاج تاج محمدصاحب سہروردی مہتمم وشیخ الحدیث دارالعلوم فیض غوثیہ کھارچی نے طلبۂ فضلیت کو “افتتاح بخاری” کی اس تقریب میں بخاری شریف کی پہلی حدیث کادرس ہوتے ہوئے کہا کہ علم قرآن وحدیث تمام علوم دینیہ کی اصل ہیں ،اس لیے ہم سبھی لوگوں کو چاہییے کہ ہم اپنے بچوں کو علوم قرآن وحدیث کی تحصیل پر خصوصی دھیان دیں،پھر آپ نے بخاری شریف پڑھنے کی فضیلت پر بھی شاندار گفتگو کی اور فرمایا کہ بخاری شریف پڑھنے سے اللّٰہ کی رحمتوں کانزول ہوتا ہے،پڑھنے والے کے چہرے پر نورانیت اور شادابی رہتی ہے،آپ نے بھی حضرت امام بخاری علیہ الرحمہ کی سیرت وسوانح اور بخاری شریف کی جمع وترتیب کی کیفیت اور علم حدیث کی تاریخ پر سیرحاصل بحث کی،سلسلۂ خطاب کو جاری رکھتے ہوئے آپ نے فرمایا کہ حضرت امام بخاری کو رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم سے بے پناہ محبت تھی اور وہ اس سے ظاہر ہے کہ امیرالمومنین فی الحدیث حضرت امام بخاری نے اپنی پوری زندگی اتباع سنت اور احادیث نبویہ کی تحقیق وتفتیش اور پھر تدریس و اشاعت میں صرف کی،آپ کاقوت حافظہ نرالا اور غیرمعمولی تھا،آپ کو “جبل الحفظ” کہاجاتا تھا،استاد سے جو حدیث سنتے یا کسی کتاب پر نظر ڈالتے وہ آپ کے حافظہ میں محفوظ ہوجاتی تھی،علم حدیث کے ساتھ آپ دیگر کئی علوم وفنون کے ماہرتھے، ساتھ ہی ساتھ آپ نے دارالعلوم انوارمصطفیٰ کی عمدہ کارکردگی اور اس کی تعمیر وترقی پر دارالعلوم کے مہتمم وشیخ الحدیث نورالعلماء شیخ طریقت حضرت علامہ الحاج سید نوراللہ شاہ بخاری مدظلہ العالی کو مبارکباد پیش کرنے کے ساتھ اپنی دعاؤں اور حوصلہ افزاکلمات سے نوازا-ساتھ ہی ساتھ آپ نے قوم کو خطاب کرتے ہوئے کہا کہ آپ حضرات اپنے بچوں کو دینی تعلیم کے ساتھ عصری علوم کی تحصیل پر خوب خوب توجہ دیں اس لیے کہ تعلیم کے بغیراس دور میں ترقی ناممکن ہے گویا آپ نے دینی تعلیم کے ساتھ عصری علوم کی تحصیل پرزوردیا-
صلوٰة وسلام،اجتماعی فاتحہ خوانی اور نورالعلماء حضرت علامہ الحاج سید نوراللہ شاہ بخاری کی دعا پر یہ مجلس سعید اختتام پزیر ہوئی-

رپورٹ:محمدشمیم احمدنوری مصباحی
ناظم تعلیمات:دارالعلوم انوارمصطفیٰ سہلاؤشریف،باڑمیر[راجستھان]

حضرت علامہ مفتی محمد ہاشم صاحب قبلہ نعیمی اور حضرت علامہ مفتی محمد نظام الدین صاحب نوری علیہما الرحمہ کے لیےمرکز علم وادب دارالعلوم غریب نواز میں محفل ایصال ثواب کا انعقاد

آج ۲٦ مئی ۲۰۲۲ء جمعرات ۹ بجے صبح مرکز علم وادب دارالعلوم غریب نواز الٰہ آباد میں استاذ الاساتذہ حضرت علامہ مفتی محمد ہاشم صاحب قبلہ نعیمی مرادآبادی علیہ الرحمہ استاذ جامعہ نعیمیہ مرادآباد ا ور خطیب الہند حضرت علامہ مفتی محمد نظام الدین نوری علیہ الرحمہ استاذ دارالعلوم فیض الرسول براؤں شریف اور ان کے صاحب زادے حضرت مولانا انوار احمد نوری علیہ الرحمہ کے ایصال ثواب کے لیے قرآن خوانی کا اہتمام کیا گیا جس میں دارالعلوم کے پرنسپل حضرت مولانا محمود عالم صاحب اور اساتذہ میں حضرت مولانا محمدرفیع اللہ صاحب ،حضرت مولانااحمد رضاصاحب، حضرت مولانا مفتی کونین نوری صاحب حضرت مولانا مفتی سفیرالحق صاحب ، حضرت مولاناقاری محمد ہارون حبیبی صاحب حضرت مولانا محمد انور چشتی صاحب حضرت مولانا غلام جیلانی وارثی صاحب وغیرہم اور دارالعلوم کے تمام طلبہ شریک ہوئے ،دارالعلوم کے سینیئر استاذ حضرت مولانا مفتی محمدمجاہدحسین رضوی مصباحی صاحب نے مذکورۃ الصدر دونوں علما کے وصال کو جماعت کا ناقابل تلافی نقصان قرار دیا اور دونوں کی حیات و خدمات پر اختصارکے ساتھ روشنی ڈالی انھوں نے کہا کہ معقولات ومنقولات پر کامل عبور رکھنے کے باوجود حضرت علامہ مفتی محمد ہاشم صاحب قبلہ نعیمی مرادآبادی علیہ الرحمہ انتہائی متواضع منکسر المزاج اور سادگی پسند تھے اپنے طلبہ کے ساتھ ان کا برتاؤ مخلصانہ اور مشفقانہ تھا جو ایک کامیاب ،اچھے اور بافیض استاذ کی پہچان ہے۔جس جامعہ نعیمیہ سے آپ فارغ التحصیل ہوئے اسی ادارے میں ۶۴ سال کی طویل مدت تک آپ نے تدریسی فرائض انجام دئے اور ہزاروں شاگرد وں نے ان سے اکتساب فیض کیا۔
اسی طرح حضرت علامہ مفتی نظام الدین صاحب نوری علیہ الرحمہ دارالعلوم فیض الرسول ہی سے تعلیم حاصل کی اور اخیر میں وہیں کے استاذ مقرر ہوئے ۔وہ ایک لائق و فاق مدرس ہونے کے ساتھ مفتی بھی تھے اور ملک کے نامور خطیب بھی ، نعتیہ شاعری سے بھی انھیں اچھا خاصہ لگاؤ تھا ان کے مجموعۂ کلام کا مسودہ ناچیز کے پاس محفوظ ہے،ہم پوری کوشش کریں گے کہ ان کا یہ مجموعہ جلد از جلد اشاعت کے مراحل سے گزر کر قارئین کے ہاتھوں میں آجائے۔اللہ رب العزت نے مفتی صاحب موصوف کوحسن صورت کے ساتھ حسن سیرت سے بھی نوازا تھا وہ ہر چھوٹے بڑے سے بڑی خندہ پیشانی اور گرم جوشی سے ملتے تھے یہی وجہ ہے کہ وہ سب کے منظور نظر تھے۔
اللہ رب العزت انھیں اپنے جوار رحمت میں جگہ عطاکرے جنۃ الفردوس میں ان کے درجات بلند کرے ان کی دینی وملی خدمات کو شرف قبول بخشے اور ان کے بدل مرحمت فرمائے۔آمین یارب العالمین

نعت رسول صلی اللہ علیہ وسلم۔۔۔از: سید خادم رسول عینی

جہاں کچھ بھی ہوگا انھیں سب پتہ ہے
ہے قرآں کا کہنا انھیں سب پتہ ہے

یہ ظاہر ہے اخرج حدیث نبی سے
ہے کون ان کا اپنا انھیں سب پتہ ہے

سراقہ نے پہنا جو سونے کا کنگن
تو پھر سب نے مانا انھیں سب پتہ ہے

نہیں لوح محفوظ پنہاں نبی سے
کہاں کیا ہے لکھا انھیں سب پتہ ہے

نبوت کے معنی سے ہم مومنوں پر
ہوا آشکارا انہیں سب پتہ ہے

ہے مالم تکن کا یہ اعلان اب بھی
کرم ہے خدا کا انھیں سب پتہ ہے

انھیں راز کی باتیں رب نے بتائیں
ہے برہان اسریٰ ، انھیں سب پتہ ہے

کرم کے وہ گل سے نوازیں گے اک دن
جو” عینی” پہ گزرا انھیں سب پتہ ہے
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از: سید خادم رسول عینی

حضرت اورنگ زیب عالمگیر علیہ الرحمہ۔۔از: سید خادم رسول عینی

حاکموں میں سب سے بہتر شاہ عالمگیر ہیں
عاشق حضرت پیمبر شاہ عالمگیر ہیں

گرچہ کرتے ہیں حکومت وہ سکندر کی طرح
پھر بھی اک مثل قلندر شاہ عالمگیر ہیں

رکھتے تھے ساری رعایا کا خیال بے مثال
درد مندی کے یوں مظہر شاہ عالمگیر ہیں

لکھ کے عالم گیری تحفہ دے دیا ہے قوم کو
عالم شرع مطہر شاہ عالمگیر ہیں

سادگی کا لیکے پیکر قبر انور ان کی ہے
شان و عظمت کا مقدر شاہ عالمگیر ہیں

خانقاہوں ، مسجدوں کی خوب تعمیریں ہوئیں
حامیء دین منور شاہ عالمگیر ہیں

ان کی تحریر و فرامیں سے ہے “عینی” واشگاف
کس قدر ماہر سخنور شاہ عالمگیر ہیں
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از: سید خادم رسول عینی

کلام قدسی اور صنعت اقتباس۔۔تبصرہ۔۔از قلم : سید خادم رسول عینی

کلام قدسی اور صنعت اقتباس
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از قلم : سید خادم رسول عینی
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علماءے بلاغت نے کلام منظوم و منثور میں صنعت اقتباس کے استعمال کو بہت اہمیت دی ہے۔صنعت اقتباس کے استعمال سے کلام میں جاذبیت آجاتی ہے اور اشعار بہت ہی معتبر اور مستند ہوجاتے ہیں ۔۔صنعت اقتباس کیا ہے؟ اہل بلاغت نے صنعت اقتباس کا ڈیفینیشن یوں بیان کیا ھے:

اقتباس یہ ہے کہ کلام منظوم و منثور میں قرآنی الفاظ کو بغیر کسی بڑی تبدیلی کے لایا جایے۔

اقتباس یہ ہے کہ کلام کو قرآن یا حدیث کے کلمات سے مزین کیا جائے۔

اقتباس یہ ہے کہ متکلم اپنے کلام میں قرآن ، حدیث کا کوئی ٹکڑا یا دیگر علوم میں سے کسی علم کے قاعدے کو شامل کرے۔

اقتباس کی مثال میں حدائق بخشش سے حسان الہند سرکار اعلیٰ حضرت علامہ احمد رضا بریلوی علیہ الرحمہ کے اشعار لاجواب ملاحظہ فرمائیں:
لیلۃالقدر میں مطلع الفجر حق
مانگ کی استقامت پہ لاکھوں سلام

فاذا فرغت فانصب یہ ملا ہے تم کو منصب
جو گدا بنا چکے اب اٹھو وقت بخشش آیا کرو قسمت عطایا

والی الالہ فارغب کرو عرض سب کے مطلب
کہ تمھی کو تکتے ہیں سب کروں ان پہ اپنا سایہ بنو شافع خطایا

ورفعنا لک ذکرک کا ہے سایہ تجھ پر
بول بالا ہے ترا ذکر ہے اونچا تیرا

انت فیھم نے عدو کو بھی لیا دامن میں
عیش جاوید مبارک تجھے شیداییء دوست

غنچے ما اوحی’ کے جو چٹکے دنی’ کے باغ میں
بلبل سدرہ تک ان کی بو سے بھی محروم ہے

ایسا امی کس لیے منت کش استاد ہو
کیا کفایت اس کو اقرأ ربک الاکرم نہیں؟

مجرم بلائے آئے ہیں جاؤک ہے گواہ
پھر رد ہو کب یہ شان کریموں کے در کی ہے

مومن ہوں مومنوں پہ رؤف و رحیم ہو
سائل ہوں سائلوں کو خوشی لا نہر کی ہے

ان پر کتاب اتری بیانا لکل شیء
تفصیل جس میں ما عبر و ماغبر کی ہے

ک گیسو ہ دہن ی ابرو آنکھیں ع ص
کھیعص ان کا ہے چہرہ نور کا

من رانی قد رای الحق جو کہے
کیا بیاں اس کی حقیقت کیجیے

حضرت حجۃالاسلام علامہ حامد رضا بریلوی علیہ الرحمہ کے اشعار میں صنعت اقتباس کی خوبیاں ملاحظہ فرمائیں:
ھوا الاول ھوالآخر ھوالظاھر ھوالباطن
بکل شیء علیم لوح محفوظ خدا تم ہو

انا لھا کہہ کے عاصیوں کو وہ لینگے آغوش مرحمت میں
عزیز اکلوتا جیسے ماں کو انھیں ہر اک یوں غلام ہوگا

مرزا غالب کے مندرجہ ذیل شعر میں صنعت اقتباس کا جلوہ دیکھیں :

دھوپ کی تابش آگ کی گرمی
وقنا ربنا عذاب النار

ڈاکٹر اقبال کے اشعار میں صنعت اقتباس کے مناظر خوشنما دیکھیں:

رنگ او ادنی میں رنگیں ہوکے اے ذوق طلب
کوئی کہتا تھا کہ لطف ما خلقنا اور ہے

کس کی ہیبت سے صنم سہمے ہوئے رہتے تھے
منہ کے بل گر کے ھو اللہ احد کہتے تھے

صنعت اقتباس کے استعمال سے فائدہ یہ ہے کہ شاعر شعر میں مفہوم، قرآن و حدیث کے حوالے سے پیش کردیتا ہے۔اس لیے شعر زیادہ معتبر و مستند ہوجاتا ہے۔ لیکن صنعت اقتباس کے استعمال کرنے میں احتیاط اور مہارت کی ضرورت پڑتی ہے۔عربی الفاظ کے تلفظ کو شعر میں بعینہٖ پیش کرنا ہے ، اگر حروف میں کمی یا بیشی کی گئی تو معنی میں فرق آجانے کا امکان رہتا ہے۔موجودہ دور میں ہم نے چند شعرا کو دیکھا ہے جو صنعت اقتباس کے استعمال میں احتیاط سے کام نہیں لیتے ، کبھی الف گرادیتے ہیں تو کبھی ی ، کبھی واؤ کو حذف کردیتے ہیں تو کبھی الف ، واو یا ی کو کھینچ دیتے ہیں ۔ایسی غلطی اس وقت سرزد ہوتی ہے جب شاعر کے اندر شعر کہنے کی مہارت نہیں ہوتی یا علم عروض میں شاعر کو پختگی حاصل نہیں ہوتی ۔ ایسی صورت میں شاعر ضرورت شعری کے نام پر بے احتیاطی کربیٹھتا ہے اور قرآنی الفاظ کے تعلق سے غلطی کر بیٹھتا ہے ۔ ایسے شعرا کو ہم نے کئی بار مختلف واٹس ایپ گروپس میں تنبیہ بھی کی ہے۔بہر حال، اب اصل موضوع کی طرف رخ کرتے ہیں ۔

حضرت علامہ سید اولاد رسول قدسی مصباحی کے مجموعہاءے کلام کے مطالعہ سے یہ عیاں ہوتاہے کہ دور حاضر میں صنعت اقتباس پر مبنی سب سے زیادہ اشعار کہنے والے شاعر کا نام ہے علامہ قدسی۔آپ کے تقریباً ہر کلام میں صنعت اقتباس پرمبنی کم سے کم ایک شعر مل ہی جاتا ہے اور کبھی کبھی ایسا بھی دیکھا گیا ہے کہ آپ نے اپنے نعتیہ/ تقدیسی کلام کے ہر شعر میں قرآن کی آیت کا حوالہ پیش کیا ہے یعنی صنعت اقتباس کا استعمال کیا ہے۔صرف یہی نہیں بلکہ آپ‌ نے قرآنی آیات کا استعمال مکمل احتیاط سے کیا ہے، کہیں بھی عروضی خامی نظر نہیں آتی، کسی بھی قرآنی لفظ یا حدیث کے کلمے کا کوئی حرف گرتا ہوا نظر نہیں آتا ، نہ ہی کہیں آپ نے کسی حرف کو بڑھا کر شعر کو آؤٹ آف وے جاکر موزوں کرنے کی کوشش کی ہے۔
اس سے نہ صرف یہ کہ شعر گوئی میں آپ کی مہارت کا پتہ چلتا ہے ، بلکہ یہ بھی عیاں ہوجاتا ہے کہ آپ دور حاضر کے ایک جید عالم دین ہیں ، علم قرآن و حدیث سے اپڈیٹیڈ ہیں اور حامل وسعت مطالعہ ہیں۔ یہی وجہ ہے کہ آپ علم قرآن و حدیث اور فن عروض کا بہترین استعمال تقدیسی شاعری میں بحسن و خوبی کرتے ہیں ۔

اب آئیے علامہ قدسی کے کلاموں میں سے چند اشعار کا مطالعہ کرتے ہیں جن اشعار میں آپ نے صنعت اقتباس کا استعمال کیا ہے۔

حال ہی میں علامہ قدسی کا ایک تازہ ترین نعتیہ کلام نظر سے گزرا جس میں ردیف ہے:
محال است محال۔
اس ردیف میں بہت ساری خوبیاں ہیں۔پہلی بات تو یہ ہے کہ اردو کلام میں آپ نے ایک طویل ردیف کا استعمال کیا ہے جو فارسی کلمات پر مشتمل ہے۔گویا یہ کلام دو زبانوں پر مبنی ہے، اردو اور فارسی۔لہذا اس کلام کو ذوالسانی کلاموں کے زمرے میں رکھا جاسکتا ہے۔ دوسری بات یہ ہے کہ اپنی ردیف میں آپ نے محال کو دوبار استعمال کرکے مفہوم کی اہمیت کو فزوں تر بنادیا ہے اور مضمون کی وقعت کو دوبالا کردیا ہے۔

کسی لفظ یا کسی فقرے کا دوبار استعمال کلام میں حسن تاکید کے لیے کیا جاتا ہے۔مثلا” سرکار اعلیٰ حضرت کا شعر دیکھیں:
تو زندہ ہے واللہ تو زندہ ہے واللہ
مرے چشم عالم سے چھپ جانے والے
اس شعر میں اعلیٰ حضرت نے تو زندہ ہے واللہ فقرے کو دوبار استعمال کیا ہے تاکہ بیان میں فورس آجائے ۔ایسی تاکید سے یہ واضح ہوجاتا ہے کہ شاعر مکمل وثوق کے ساتھ مفہوم کو بیان کررہا ہے اور شاعر کے پاس اپنے مفہوم کو ثابت کرنے کے لئے دلائل موجود ہیں ۔تبھی تو علامہ رضا بریلوی علیہ الرحمہ فرماتے ہیں:
تو زندہ ہے واللہ تو زندہ ہے واللہ
مرے چشم عالم سے چھپ جانے والے

اس قسم کے حسن تاکید سے مزین اعلیٰ حضرت کا ایک اور شعر ملاحظہ فرمائیں:
مطلع میں یہ شک کیا تھا واللہ رضا واللہ
صرف ان کی رسائی ہے صرف ان کی رسائی ہے
اس شعر میں اعلیٰ حضرت نے واللہ کو دوبار استعمال کیا ہے اور صرف ان کی رسائی ہے کو بھی شعر/ مصرع میں دوبار لایا ہے

علامہ قدسی نے اپنے کلام کے ہر شعر میں مفہوم پیش کرنے کے بعد کہتے ہیں : محال است محال۔
یعنی کہ آپ نے مکمل وثوق کے ساتھ مفاہیم‌ بیان کیے ہیں جن میں کسی قسم کے تردد کا شائبہ بھی نہیں ہے اور ان مفاہیم کو ثابت کرنے کے لئے آپ کے پاس دلائل بھی موجود ہیں۔
آپ کے اس کلام کے افاعیل ہیں:
فاعلاتن فَعِلاتن فَعِلاتن فَعِلن/ فعلان۔
اور بحر کا نام ہے:
بحر رمل مثمن مزاحف مخبون محذوف مسبغ

اس کلام کے چند اشعار ملاحظہ فرمائیں:
شاہ کونین کی تمثیل محال است محال
مثل قرآن ہو تنزیل محال است محال
اس شعر میں آپ نے دعویٰ کیا ہے کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم کی تمثیل کونین میں کہیں بھی نہیں ہے اور قرآن جیسی کتاب کا بھی ملنا دنیا میں محال ہے۔ان دونوں دعووں کو ثابت کرنے کے لئے آپ کے پاس نقلی و عقلی دلائل موجود ہیں ، تبھی تو پورے وثوق کے ساتھ کہہ رہے ہیں :
شاہ کونین کی تمثیل محال است محال
مثل قرآن ہو تنزیل محال است محال

اسی کلام میں ایک شعر ہے :
جس کا دل ہے ختم اللہ کا مصدر اس میں
حق کے پیغام کی تقبیل محال است محال
یہ شعر صنعت اقتباس پر مبنی ہے۔اس شعر میں مفہوم بیان کرنے کے لیے علامہ قدسی نے قرآن کی آیت (سورہء بقرہ / آیت ٧) کا حوالہ دیا ہے اور قرآنی آیت کو کووٹ کرکے صنعت اقتباس کا استعمال بہت عمدہ اسلوب سے کیا ہے۔وہ آیت یوں ہے :
ختم اللہ علی قلوبھم وعلی سمعھم وعلی ابصارھم غشاوۃ ولھم عذاب عظیم
ترجمہ:
اللہ نے ان کے دلوں پر اور کانوں پر مہر کردی اور ان کی آنکھوں پر گھٹا ٹوپ ہے اور ان کے لیے بڑا عذاب ۔
(کنز‌ الایمان)

اس آیت کا مفہوم یہ ہے کہ ان کافروں کا ایمان سے محروم رہنے کا سبب یہ ہے کہ اللہ نے ان کے دلوں اور کانوں پر مہر لگا دی ہے جس کی بنا پر یہ حق سمجھ سکتے ہیں نہ حق سن سکتے ہیں اور نہ ہی اس سے نفع اٹھا سکتے ہیں اور ان کی آنکھوں پر پردہ پڑا ہوا ہے جس کی وجہ سے یہ اللہ تعالی’ کی آیات اور اس کی وحدانیت کے دلائل دیکھ نہیں سکتے اور ان کے لیے بڑا عذاب ہے۔اسی مفہوم کو علامہ قدسی نے ایک شعر کے ذریعہ بہت ہی دلکشی کے ساتھ اور مکمل وضاحت کے ساتھ پیش کیا ہے ، کہتے ہیں:

جس کا دل ہے ختم اللہ کا مصدر اس میں
حق کے پیغام کی تقبیل محال است محال

ایک اور کلام میں ارشاد فرماتے ہیں:
نص قرآں ورفعنالک ذکرک ہے گواہ
دشت میں ذکر ترا ، شہر میں چرچا تیرا
اس شعر میں جس آیت کریمہ کا حوالہ دیا گیا ہے وہ یہ ہے:
ورفعنا لک ذکرک۔
سورہ الم نشرح ، آیت ٤
ترجمہ: اور ہم نے تمہارے لیے تمہارا ذکر بلند کیا ۔

حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے ذکر کی بلندی یہ ہے کہ اللہ کے ذکر کے ساتھ آپ کا ذکر کیا جاتا ہے اور اللہ نے اذان میں ، قیامت میں ، نماز میں ، تشہد میں، خطبے میں اور کثیر مقامات پر اپنے ذکر کے ساتھ آپ کا ذکر کیا ھے۔یہی وجہ ہے کہ شہر شہر میں آپ کا چرچا ھے، نگر نگر آپ کا ذکر ہے۔جلوت میں بھی آپ کا ذکر ہے اور خلوت میں بھی ، عرب میں بھی آپ کا چرچا ہے اور عجم میں بھی ۔ آپ کا ذکر صرف خلیجی ممالک میں نہیں ہوتا بلکہ ہند و پاک اور یوروپ و اسٹریلیا میں بھی آپ کا ذکر جمیل ہوتا ہے ۔ زمین میں بھی آپ کا چرچا ہے اور آسمانوں میں‌ بھی ۔آبادی کے علاقے میں بھی آپ کا چرچا ہے اور غیر آباد‌ علاقوں میں بھی الحمد لللہ۔اسی لیے علامہ قدسی فرماتے ہیں:
نص قرآں ورفعنالک ذکرک ہے گواہ
دشت میں ذکر ترا ، شہر میں چرچا تیرا

صنعت اقتباس پر مبنی ایک اور شعر ملاحظہ فرمائیں:
صداءے فزت بربی بھلا نہ کیوں گونجے
کٹی زباں ہے رسالت مآب کی خاطر
یہ شعر تلمیحی بھی ہے۔جنگ بدر میں ایک صحابیء رسول کی شہادت ہوئی اور دشمن اسلام نے ان کی زبان کاٹ دی ۔زبان کٹنے کے بعد بھی ان کی زبان سے یہ آواز آرہی تھی :
فزت بربی یعنی میں رب کی قسم میں کامیاب ہو گیا ، کل قیامت کے دن اگر مجھ سے پوچھا جائےگا کہ تمہاری زبان کہاں گئی تو میں فخر سے کہونگا کہ ناموس اسلام و رسالت کے لیے میں نے اپنی جان قربان کردی اور اپنی زبان بھی نذر کردی۔اس واقعے کی طرف اشارہ کرتے ہوئے علامہ قدسی فرماتے ہیں:
صداءے فزت بربی بھلا نہ کیوں گونجے
کٹی زباں ہے رسالت مآب کی خاطر

ایک اور کلام میں ارشاد فرماتے ہیں:
آیت من‌ شعاءر کا پیغام ہے
ہم کو کرنا ہے رب کی نشانی پہ ناز
اس شعر میں جس آیت کا حوالہ پیش کیا گیا ہے وہ مندرجہ ذیل ہے:
ذالک ومن یعظم شعاءر اللہ فا نھا من تقوی القلوب۔
سورہء حج، آیت ٣٢
ترجمہ : بات یہ ہے اور جو اللہ کے نشانوں کی تعظیم کرے تو یہ دلوں کی پرہیز گاری سے ہے۔

اس آیت سے یہ ہدایت ملی کہ ہم اللہ کی نشانیوں کی تعظیم کریں ۔مثال کے طور پر مناسک حج پر اگر غور کیا جائے تو یہ پتہ چلتا ہے کہ ہم حج کے دوران وہی کرتے ہیں جو حضرت ابراہیم علیہ السلام اور حضرت ہاجرہ نے کیا تھا ۔قربانی کرنا، جمرات پر کنکر مارنا، طواف کرنا، صفا و مروہ کے درمیان سعی کرنا یہ سب ان کی سنتیں ہیں اور ہم بہت ہی احترام سے عمرہ/ حج کے دوران ان کی سنتوں کو عملی جامہ پہناتے ہیں ۔
اور ہمیں ناز ہے کہ ہم سنت ابراہیمی پر عمل پیرا ہیں اور ان کی نشانیوں کی تعظیم دل سے کرتے ہیں۔اس لیے علامہ قدسی کہتے ہیں:
آیت من‌ شعائر کا پیغام ہے
ہم کو کرنا ہے رب کی نشانی پہ ناز

ایک اور مقام پر ارشاد فرماتے ہیں:
انصتوا فاستمعوا کا ہے یہی حکم جلی
جب ہو قرآں کی تلاوت تو سماعت ہے فرض

اس شعر میں قرآن کی جس آیت کا حوالہ دیا گیا ہے وہ مندرجہ ذیل ہے:
واذا قری القرآن فاستمعو لہ وانصتوا لعلکم ترحمون۔
سورہء اعراف ، آیت ٢٠٤
ترجمہ : اور جب قرآن پڑھا جائے تو اسے غور سے سنو اور خاموش رہو تاکہ تم پر رحم کیا جائے۔

اس آیت سے یہ ثابت ہوا کہ جس وقت قرآن پڑھا جائے خواہ نماز میں ہو یا خارج نماز میں اس وقت سننا اور خاموش رہنا واجب ہے ۔اس مفہوم کو سہل ممتنع کے انداز میں علامہ قدسی نے کس حسین پیرائے سے شعر کے سانچے میں ڈھالا ہے، کہتے ہیں:
انصتوا فاستمعوا کا ہے یہی حکم جلی
جب ہو قرآں کی تلاوت تو سماعت ہے فرض

صنعت اقتباس پر مبنی ایک اور شعر ملاحظہ فرمائیں:
زار قبری پہ بصد شوق جو کرتا ہے عمل
ایسے حاجی کے لیے ان کی شفاعت ہے فرض

اس شعر میں حضور صلی اللہ علیہ وسلم کی ایک مشہور حدیث کا حوالہ دیا گیا ہے اور وہ حدیث ہے:
من زار قبری وجبت لہ شفاعتی ۔
ترجمہ : جس نے میری قبر کی زیارت کی اس کے لیے میری شفاعت واجب ہوگئی ۔
یعنی کہ حضور صلی اللہ علیہ وسلم کے روضہء مبارک کی زیارت کے لیے حاضر ہونے والوں کو شفاعت کی بشارت ملی ہے ۔اس سے یہ بھی پتہ چلتا ہے کہ زائرِ روضہء مطہر کا خاتمہ ایمان پر ہوگا ۔اس حدیث مبارکہ کو علامہ قدسی نے بہت ہی دلکش انداز سے شعر کا جامہ پہنایا ہے، کہتے ہیں:
زار قبری پہ بصد شوق جو کرتا ہے عمل
ایسے حاجی کے لیے ان کی شفاعت ہے فرض

ایک اور کلام میں ارشاد فرماتے ہیں:
قدسی الحب فی اللہ کا کل متن
اصل ایماں کی تقیید سے کم نہیں
یہ شعر جس حدیث کی سمت اشارہ کررہا ہے وہ یوں ہے:
افضل الاعمال الحب فی اللہ والبغض فی اللہ ۔
یعنی حضور صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
اللہ تعالیٰ کی خاطر کسی سے محبت کرنا اور اللہ تعالیٰ ہی کی خاطر کسی سے نفرت کرنا سب سے زیادہ فضیلت والا عمل ہے۔
اس سے پتہ یہ چلا کہ ایسی محبت جس میں اللہ تعالیٰ کی رضا مقصود ہو ، نفسیاتی خواہشات کی آمیزش نہ ہو افضل اعمال سے ہے۔ نماز ، روزہ ، زکاۃ، حج بھی الحب فی اللہ کی شاخیں ہیں کہ مسلمان صرف اللہ کی رضا کی خاطر ان اعمال سے محبت کرتا ہے اور اللہ کا حکم بجالاتے ہوئے یہ اعمال صالحہ کرتا ہے جو عین ایمان و اصل ایماں کا تقاضہ ھے۔ اس لیے علامہ قدسی کہتے ہیں :
قدسی الحب فی اللہ کا کل متن
اصل ایماں کی تقیید سے کم نہیں

ماہ رمضان کے ایام میں علامہ قدسی کی ایک نظم سوشل میڈیا میں بہت مقبول خاص و عام ہوئی تھی جس کا عنوان ہے: اصحاب بدر ۔
اس نظم میں کل نو اشعار ہیں ۔ان نو اشعار میں سے چار اشعار صنعت اقتباس کا حسن لیے ہوئے ہیں ۔آپ بھی ان اشعار کو ملاحظہ فرماءیے اور علامہ قدسی کے وسعت مطالعہ ، علمی تبحر، عروض دانی اور قادر الکلامی کی داد دیجیے:
اعملوا ہے حدیث شہ دیں گواہ
نور تقریر غفران اصحاب بدر
کہہ رہا ہے لکم آیۃ قول رب
راہ حق کے نگہبان اصحاب بدر
اقتدیتم ہے ارشاد شاہ زمن
ہیں ہدایت کی میزان اصحاب بدر
قدسی انتم اذلہ کا اعلان ہے
مشک اظہار احسان اصحاب بدر

اسی طرح علامہ قدسی کے سیکڑوں اشعار ہیں جس میں قرآن و حدیث کے اقتباسات کو کووٹ کرکے مکمل وضاحت کے ساتھ ایمان افروز مفاہیم پیش کیے گئے ہیں۔ان شا ء اللہ پھر کبھی دیگر اشعار کی تشریح پر مبنی مقالہ پیش کیا جائےگا۔

مندرجہ بالا حقائق کی روشنی میں یہ وثوق کے ساتھ کہا جاسکتا ہے کہ علامہ قدسی دور حاضر میں صنعت اقتباس کے بہت ہی عظیم شاعر ہیں جن کی تمثیل دور دور تک کہیں نظر نہیں آتی۔