हज़रत मौलाना मुबारक हुसैन साहब कोनरा,चौहटन,बाड़़मेर के भाइयों की शादी के मुबारक मौक़े पर एक दीनी व इस्लाही प्रोग्राम हुवा।जिस में राजस्थान की मुम्ताज़ दीनी दर्सगाह “दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा ” के मुहतमिम व शैखुल हदीष पीरे तरीक़त नूरुल उ़ल्मा हज़रत अ़ल्लामा अल्हाज सय्यद नूरुल्लाह शाब बुखारी सज्जादा नशीन:खानक़ाहे आ़लिया बुखारिया सेहलाऊ शरीफ ने खिताब करते हुए फरमाया कि ” इस्लाम में शादी यानी निकाह बहुत आसान और कम खर्च वाला अ़मल (काम) था -लेकिन आज हम ज़िंदगी के हर शोअ़्बे में पस्ती का शिकार हुए,वहीं एैश परस्ती भी हमारे अंदर आ गई है-हम ने हर अ़मल व काम को दिखावा बना लिया है-मौजूदा दौर में बढ़ती हुई मंहगाई के बा वजूद शादी विवाह व दोसरे तक़रीबात के मौक़े पर इंतिहाई इसराफ व फुज़ूल खर्ची से काम लिया जा रहा है-जिस के नतीजे में मुआ़शरे में मौजूद अफराद की एक बहुत बड़ी तादाद को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है,खास तौर पर निचले तबक़े से तअ़ल्लुक़ रखने वाले हज़रात के लिए यह रुसूमात दर्दे सर बनी हुई हैं,शादी विवाह का मुरव्वजा निज़ाम ग़रीब लोगों की शादी में एक रुकावट बन चुका है,जिसे खतम करना हम में से हर एक की ज़्म्मेदारी है, क्यों कि इन रुसूमात की वजह से जितने भी लोग मतअष्षिर होंगे उन का वबाल रस्म व रिवाज पर अ़मल करने वालों पर भी होगा। इन रस्मों में किस क़दर माल खर्च किया जाता है जब कि कुरआने मुक़द्दस में फुज़ूल खर्ची करने वालों को शैतान का भाई कहा गया है,इसी वजह से हुज़ूर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया “सब से बा बरकत निकाह वह है जिस में सब से कम मुशक़्क़त [कम खर्च और तकल्लुफ] हो-आज हम हराम रस्मों व बेहूदा रिवाजों की वजह से शादी को खाना आबादी की जगह “खाना बरबादी” बल्कि खानहा बरबादी यानी बहुत सारे घरों के लिए बरबादी का सबब बना लेते हैं।अगर हम अपने आक़ा हुज़ूर नबी-ए-रहमत सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की शहज़ादी खातूने जन्नत हज़रत सय्यदतुना फातमा ज़हरा के मुबारक निकाह और दीगर सहाबा-ए-किराम की शादियों को देखा जाए तो पता चलता है कि शादी करना आसान है क्यों कि हमारे लिए रहबर व रहनुमा यही हस्तियाँ हैं जिन की इत्तिबाअ़ दुनिया व आखिरत में कामियाबी का ज़रिआ़ है -याद रखिए! शादी के लिए शरीअ़त ने बहुत बड़े टेंट व डेकूरेशन को लाज़िम नहीं क़रार दिया है और न ही नाम व नमूद व नुमाइश, और न ही आतिश बाज़ी और फुज़ूल खर्चियों को शादी का हिस्सा क़रार दिया है बल्कि इन में से बहुत सी सूरतैं नाजाइज़ व हराम हैं-जब शरीअ़त का हुक्म इसराफ व फुज़ूल खर्ची से बचने का और निकाह को आसान बनाने का है तो हमारे यहाँ निकाह की तक़रीबात जिन में खुल कर फुज़ूल खर्चीयाँ होती हैं और नाच गाना करवाई जाती हैं और अहकामे शरीअ़त की धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं उन से हमारे और आप के आक़ा की खुशी कैसे नसीब हो सकती है? और जिस तक़रीब [प्रोग्राम] से अल्लाह व रसूल राज़ी न हों तो उस से पूरी दुनिया भी अगर खुश हो जाए तो भी उस तक़रीब में बरकत नहीं आ सकती,इस के बर खिलाफ जिस तक़रीब से अल्लाह व रसूल खुश हों तो वही बा बरकत होगी अगरचे पूरी दुनिया नाराज़ हो जाए- इस लिए हमें चाहिए कि हम अपनी शादियों को बेजा व ग़ैर शरई रुसूमात बिल खुसूस नाच गाने से पाक कर के एैसे मौक़ों पर नेक मज्लिसों का इन्इक़ाद व एहतिमाम किया करें जैसे मौलाना मुबारक साहब क़ादरी और इन के घर वालों ने किया है ताकि इन मज्लिसों के ज़रिआ़ लोगों की इस्लाह हो , और वैसे भी एैसी मज्लिसैं जिन में अल्लाह व रसूल का ज़िक्र किया जाए,ज़िक्र व अज़कार और दरूद शरीफ पढ़ा जाए वोह बाइषे खैर व बरकत हुवा करते हैं।मौलाना मुबारक साहब ने यह एक अच्छी पहल की है,अल्लाह तआ़ला इन शादीयों को बाइषे खर व बरकत बनाए।आप ने अपने खिताब में शादी से मतअ़ल्लिक़ और भी बहु सी इस्लाही बातैं कीं।इस दीनी व मज़हबी प्रोग्राम में इफ्तिताह़ी[शुरुआ़ती] तक़रीर करते हुए हज़रत मौलाना मुबारक हुसैन साहब क़ादरी अशफाक़ी ने भी लोगों को यही पैग़ाम दिया कि”हम सभी लोगों को चाहिए कि शादी विहाह के मौक़ों पर हमारे मुआ़शरे में जो खुराफात आ गए हैं उन से हत्तल इम्कान[जहाँ तक हो सके] परहेज़ करें”इस प्रोग्राम में खुसूसियत के साथ मद्दाहे रसूल जनाब हाफिज़ रोशन साहब क़ादरी मिठे का तला ने नअ़त व मन्क़बत के नज़राने पेश किए-जब कि इस पेरोग्राम में यह हज़रात शरीक हुए-★हज़रत मौलाना ग़ुलाम रसूल साहब क़ादरी खतीब व इमाम: जामा मस्जिद ईटादा,☆हज़रत मौलाना अ़ब्दुल हलीम साहब खतीब व इमाम: जामा मस्जिद कोनरा,★हज़रत मौलाना दिलावर हुसैन हुसैन साहब क़ादरी सदर मुदर्रिस:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ,☆हज़रत हाफिज़ व क़ारी कबीर अहमद साहब सिकन्दरी अशफाक़ी सदर मुदर्रिस:मदरसा फैज़ाने हिज़्बुल्लाह शाह लाठी,जैसलमेर,★मौलाना शाकिर साहब सुहर्वर्दी,☆क़ारी मुहम्मद शरीफ अशफाक़ी कोनरा,★ मौलाना दोस्त मुहम्मद अशफाक़ी ईटादा,☆क़ारी अरबाब अ़ली क़ादरी अनवारी सोभाणी वग़ैरहुम-सलातो सलाम और क़िब्ला पीर सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी की दुआ़ पर यह मज्लिस इख्तिताम पज़ीर हुई।रिपोर्टर:मुहम्मद उ़र्स सिकन्दरी अनवारीमुतअ़ल्लिम दरजा-ए-फज़ीलत:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा पच्छमाई नगर,सेहलाऊ शरीफ,पो:गरडिया [तह:रामसर]ज़िला:बाड़मेर (राज:)