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Archives January 2023

दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ में गणतंत्र दिवस के मौक़े पर तिरंगा फहराया गया।रिपोर्ट:(मौलाना) हबीबुल्लाह क़ादरी अनवारीऑफिस इंचार्ज:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा, पच्छमाई नगर,सेहलाऊ शरीफ,पो:गरडिया,तह:रामसर,ज़िला:बाड़मेर][राजस्थान]


अनवारे मुस्तफा सीनियर सैकंडरी स्कूल के बच्चों ने रंगा रंग कार्यक्रम पेश किया।


       आज का दिन हर हिंदुस्तानी के लिए बेहद खास है क्योंकि आज ही के दिन 1950 को हमारे देश में संविधान लागू हुआ था. 

यही वजह है कि आज हिंदुस्तान में सभी छोटी-बड़ी जगहों,स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी और सभी सरकारी व प्राइवेट [निजी] कार्यालयों व शिक्षण व समाजिक संस्थाओं व प्रमुख स्थलों पर झंडा फहराया जाता है. चुनान्चे इस मौक़े पर दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा व उस की सभी तअ़लीमी शाखाओं समेत बाड़मेर ज़िले के अन्य मदरसों में भी 74 वां गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय ध्वज फहराकर व राष्ट्रगान गाकर बड़ी धूम-धाम से मनाया गया।

इस मौक़े पर उ़लमा-ए-किराम ने कहा कि यह बात हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारे मुल्क के जाँबाज़ों व हमारे बुजुर्गों ने इस देश को आज़ाद कराने में कितनी कुर्बानियां दी हैं. आज भारतीय इतिहास का यादगार दिन है. जिसे हम सभी लोगों को इसी तरह धूमधाम के साथ मनाना चाहिए.

सब से पहले हज़रत पीर सैयद दावन शाह बुखारी व बीएसएफ के जवानों के हाथों तिरंगा फहराया गया, फिर सभी लोगों ने एकत्रित होकर एक साथ राष्ट्रगान गाया, फिर अनवारे मुस्तफा सीनियर सेकेंडरी स्कूल व दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सेहलाऊ शरीफ के छात्रों ने अपना रंगारंग प्रोग्राम परेड भाषण और वतन से मुहब्बत पर आधारित तरानों की शक्ल में पेश किया, परेड का निरीक्षण हज़रत पीर सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी व श्री सत्यवान गौड़ सहायक कमांडेंट व
इन्स्पेक्टर श्री महेश नागदा
76 बटालियन बी एस एफ ने किया-
परेड के निरीक्षण के बाद श्री महेश नागदा ने बच्चों के जरिया पेश किए गए निरीक्षण की तारीफ की और कहा कि हमने बहुत इदारों में इस तरह का प्रोग्राम देखा मगर यहां का अंदाज निराला नज़र आया, यह सब यहां के स्टाफ की मेहनत और अच्छी तरबियत का नतीजा है।
दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा के प्रबंधक हज़रत अ़ल्लामा पीर सय्यद नूरुल्लाह शाह बुखारी ने अपने संबोधन के दौरान सब से पहले इस प्रोग्राम में शामिल सभी मेहमानों का इस्तिक़बाल किया और मुख्य अतिथियों का राजस्थानी साफा पहनाकर और गुलपोशी करके इस्तकबाल किया फिर लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि “दरअसल, हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस इसलिए मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन पूरे देश में संविधान लागू किया गया। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के साथ ही भारत को पूर्ण गणराज्य घोषित किया गया था। यही वजह है कि हर साल इस खास दिन की याद में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। और इस से पूरे मुल्क में अमन और भाईचारे का पैगाम जाता है” इस मौक़े पर दूसरे वक्ताओं ने सभी से बुजुर्गों के नक़्शे क़दम पर चलकर उनकी तमाम शिक्षाओं को जीवन में उतारने का आह्वान किया.

          मुख्य अतिथि के तौर पर श्री सत्यवान गौड़ सहायक कमांडेंट व

इन्स्पेक्टर श्री महेश नागदा
76 बटालियन बी एस एफ और बी एस एफ व मिलिटरी के कुछ दूसरे जवानों ने इस कार्यक्रम में भाग लेकर दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा सीनियर सेकेंडरी स्कूल के विद्यार्थियों द्वारा पेश किए जाने वाले प्रोग्राम विशेषकर परेड का निरीक्षण किया और उसके बाद अपने भाषण के दौरान उन्होंने गणतंत्र दिवस के बारे में अनवारे मुस्तफा सीनियर सेकेंडरी स्कूल के बच्चों और अ़वाम से कुछ इस तरह की बातैं की”सब से पहले तो उन्हों ने इस पूरेे प्रोग्राम की प्रशंसा की फिर गणतंत्र दिवस के बारे में विस्तार से बयान किया और अपने संबोधन में यह कहा कि “भारत में हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस (Republic Day) के रूप में मनाया जाता है, क्‍योंकि इसी दिन से भारत में संविधान लागू हुआ था. बरसों तक अंग्रेजों की गुलामी सहने के बाद भारत को 15 अगस्‍त 1947 में आजादी मिली थी और इसके करीब तीन साल बाद देश में संविधान लागू किया गया. संविधान की मसौदा समिति की अध्‍यक्षता डॉ भीम राव अंबेडकर ने की थी. देश हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस भी मनाता है, क्‍योंकि इस दिन यानी 26 नवंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने भारत के संविधान को अपनाया था-
देश में गणतंत्र दिवस (Republic Day Celebration) सम्‍मान और धूमधाम से मनाया जाता है. देश भर में कई कार्यक्रम होते हैं. इस दिन का सबसे आकर्षक समारोह दिल्‍ली के राजपथ पर होने वाली भव्‍य परेड होती है जो इंडिया गेट तक जाती है. देश के राष्‍ट्रपति राजपथ पर झंडा फहराते हैं. गणतंत्र दिवस (Republic Day Significance) के लिए 26 जनवरी का बड़ा महत्‍व है. इसी दिन 1930 में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्‍वराज की घोषणा की थी और यह दिन भारत की जनता को लोकतांत्रिक ढंग से सरकार चुनने की ताकत की याद भी दिलाता है. देश में यह राष्‍ट्रीय पर्व हर्ष उल्‍लास के साथ मनाया जाता है और इस दिन राष्‍ट्रीय अवकाश होता है.
अनवारे मुस्तफा स्कूल के प्रधानाचार्य मास्टर मोहम्मद यूनुस खान ने दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा शिक्षण संस्थान के अंतर्गत चलने वाले सभी इदारों विशेषकर अनवारे मुस्तफा सीनियर सेकेंडरी स्कूल का पूरा बायोडाटा लोगों के सामने पेश किया-
इस प्रोग्राम का संचालन मौलाना मोहम्मद हुसैन क़ादरी अनवारी ने किया।
इस अवसर पर दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा व सीनियर सेकेंडरी स्कूल का पूरा स्टाफ व सभी स्टूडेंट के अलावा इलाक़े के सैकड़ो अ़वाम ने शिरकत कर के अपनी हुब्बुल वतनी का इज़हार किया।
इस प्रोग्राम में मुख्य रूप से इन हज़रात ने शिरकत की- हज़रत सय्यद गुलाम शाह मटारी सरपंच बमणोर, हज़रत सय्यद पीर इब्राहिम शाह बुखारी,सय्यद गुलाम शाह बुखारी, सय्यद इस्माईल शाह बुखारी,हज़रत मौलाना सय्यद सदर अ़ली शाह बुखारी,सय्यद जलाल शाह बुखारी, सय्यद मेहर अ़ली शाह बुखारी,मौलाना मोहम्मद शमीम अहमद नूरी मिस्बाही, मौलाना दिलावर हुसैन क़ादरी, मौलाना बाक़िर हुसैन क़ादरी अनवारी, मौलाना जमालुद्दी क़ादरी अनवारी, मौलाना इलमुद्दीन क़ादरी अनवारी, मौलाना इस्लामुद्दीन क़ादरी अनवारी,मौलाना अ़ब्दुल हलीम क़ादरी अनवारी,हाफिज़ व क़ारी बरकत अ़ली क़ादरी,हाफिज़ क़मरुद्दीन क़ादरी, मास्टर मोहम्मद ताहिर खान, मास्टर मोहम्मद इस्हाक़,मास्टर मक़बूल खान,मास्टर मोहम्मद हनीफ मास्टर सुलेमान, मास्टर मुरीद खान,शुमार खान आदि

रिपोर्ट:(मौलाना) हबीबुल्लाह क़ादरी अनवारी
ऑफिस इंचार्ज:दारुल उ़लूम अनवारे मुस्तफा, पच्छमाई नगर,सेहलाऊ शरीफ,पो:गरडिया,तह:रामसर,ज़िला:बाड़मेर [राजस्थान]

Republic Day……Written by: Sayed khadime Rasul Aini

Oh my friend and mate, today is republic day ,
Let us celebrate, today is republic day

Let us gather and sing in praise of our nation ,
Let’s deliberate, today is republic day

Let us strive hard for achieving our aims and goals
And accelerate, today is republic day

Let us respect democratic views sincerely,
Let us tolerate ,today is republic day

Let us uphold unity in diversity
And not separate, today is republic day

The ideas how our great nation will progress
Let us generate, today is republic day

To find out the mystery of life , every corner
Let us penetrate, today is republic day

To help our fellow citizens in our country
Let us elevate ,today is republic day

Our sacred constitution came into effect ,
Let us decorate ,today is republic day

Let us pay homage to the martyrs of nation
And commemorate ,today is republic day

Motto of life should be to respect each other
And not denigrate, today is republic day

Aini let’s unfurl our flag and for our nation
Let us supplicate, today is republic day
۔۔۔۔……………………………………………
Written by: Sayed khadime Rasul Aini

منقبت در شان حضرت خواجہ معین الدین چشتی علیہ الرحمہ۔۔۔۔۔۔۔۔۔از: سید خادم رسول عینی قدوسی ارشدی

حمد باری میں تھا ہر لمحہ معین الدین کا
اس لیے عالم میں ہے شہرہ معین الدین کا

پیار ہر اک دل میں ہے خواجہ معین الدین کا
مرکز عشق و وفا روضہ معین الدین کا

شر سے وہ رخصت ہوا اور خیر کی جانب چلا
جس بشر کو مل گیا صدقہ معین الدین کا

ہند کا راجہ بناکے بھیجا آقا نے انھیں
جان لیجیے اس سے ہی رتبہ معین الدین کا

کوئی دیکھے ان کے مرشد ہرونی کا فیض خاص
ہر جگہ ہوتا رہا چرچا معین الدین کا

ہجرتیں کیں اور مصائب خوب جھیلے زیست میں
دیں کی خاطر دیکھیے جذبہ معین الدین کا

دیکھتا تھا میں تصور میں وہیں سے خلد پاک
سامنے جب تھا مرے روضہ معین الدین کا

دیکھ لو شق کرکے سینہ، اس میں ہے ایماں کا نور
ایسا عاشق میں ہوا پختہ معین الدین کا

کلمہء توحید ، عزم پختہ و عشق نبی
تھا یہی بھارت میں کل دستہ معین الدین کا

وہ عطائے ہادیء کل عالمیں ہیں ، اس لیے
رستہ ہے سرکار کا رستہ معین الدین کا

ہیں بنائے لا الہ سبط امام‌ المرسلیں
یاد رکھیے آپ یہ نکتہ معین الدین کا

ہند کے سلطان کے در پر ہیں حاضر شاہ بھی
ہے بہت موزوں لقب خواجہ معین الدین کا

ہیں نظام الدیں فرید الدیں نصیر الدین گل
کس قدر عالی ہے گلدستہ معین الدین کا

گر گیا غش کھا کے وہ آیا فلک سے ارض کو
دیکھا جب جے پال نے پنجہ معین الدین کا

اس کی برکت سے ہوئے اوراق سب تابندہ تر
ہے کتاب زیست میں صفحہ معین الدین کا

کوئی میخانہ زمانے کا مجھے کیسے لبھائے
پی لیا ہے میں نے جب بادہ معین الدین کا

کیوں نہ مرہون کرم ہوں ہند کے سب مومنین
ہے یہاں ایماں عطا کردہ معین الدین کا

یہ انا ساگر کے قصے سے ہوا ہے واشگاف
مثل دریا ہے ہر اک قطرہ معین الدین کا

پڑھ کے اس کو جان لیجیے عظمت سبط نبی
ہے بہت واضح تریں قطعہ معین الدین کا

سارے قلعے بادشاہوں کے ہوئے اس پر نثار
چھو رہا ہے چرخ کو قلعہ معین الدین کا

نسبت عالی کا ہے گر پاس اے عشاق شہ
آپ بھی اپنائیے اسوہ معین الدین کا

گل ہی کیا خار چمن بھی ان کے گرویدہ ہوئے
کس قدر لہجہ ہے شائستہ معین الدین کا

آپ اجمیر مقدس جاکے دیکھیں ان کا رنگ
کس قدر تابندہ ہے قریہ معین الدین کا

دامن کہسار میں آرام فرما ہیں مگر
ساحل دریا میں ہے سکہ معین الدین کا

ہوگیا ظاہر یہی ھذا حبیب اللہ سے
ہے ولایت میں بڑا رتبہ معین الدین کا

میری آنکھوں کی ہے ٹھنڈک اور قرار قلب ہے
ہے عزیز از جان بھی روضہ معین الدین کا

کتنوں نے زلفیں سنواریں خوبیء کردار کی
ہے بہت شفاف آءینہ معین الدین کا

ہے مقدس تر تصوف کا محل اس کو بچاؤ
قیمتی ہے عینی سرمایہ معین الدین کا

مسلک احمد رضا خاں کا جو حامی بن گیا
عینی ہوگا بس وہی پیارا معین الدین کا
۔۔۔
از: سید خادم رسول عینی قدوسی ارشدی

خواجہ غریب نواز کے چند اہم ملفوظات تحریر: محمد مقصود عالم قادری اتردیناجپور مغربی بنگال

بزرگان دین کے اقوال و فرمودات ہمارے لئے ایک نعمت ہے, ان کے اقوال اتنے بااثر ہوتے ہیں کہ پڑھنے والے کے دل میں فوراً وہ بات کارگر ثابت ہوتی ہے ,ان کی باتیں اگرچہ بہت مختصر ہوتی ہیں ,لیکن ایسا لگتا ہے کہ سمندر کو کوزے میں سمیٹ دیا گیا ہے ,جو بات ضخیم و طویل کتابوں میں بھی نہیں ملتی, ان کے مختصر ملفوظات میں مل جاتی ہے ,ایک سادہ اور عام فہم بات جس کے اندر زیادہ اشکال بھی نہ ہو ,اگر ان کی مبارک زبان سے ادا ہو جائے تو لوگوں کی تقدیریں بدل دیتی ہے, اس لئے کہ
گفتہ او گفتہ اللہ بود
گرچہ از حلقوم عبداللہ بود
یعنی اللہ تعالی کے دوستوں کا بولنا دراصل اللہ تعالی کا بولنا ہے اگرچہ زبان بندے کی ہو –
ایک جملے میں حقیقت و معرفت کے خزانے کو سمو دینا اللہ والے اور عارفین کے لیے بائیں ہاتھ کا کھیل ہے –
ان عظیم ہستیوں کا ہم پریہ احسان ہے کہ جنہوں نے بزرگوں کے اقوال و فرمودات کو سپرد قرطاس کیا اور ہم تک وہ موصول ہوئیں,
انہیں میں سے خواجہ قطب الدین بختیار کاکی رحمتہ اللہ علیہ کی ذات مبارکہ ہے ,جنہوں نے اپنے پیر و مرشید خواجہ خواجگان ,عطائے رسول, خواجہ معین الدین چشتی اجمیری سنجری علیہ الرحمۃ کے حسین ملفوظات کو جمع کیا اور ایک کتابی شکل دی جس کا نام “دلیل العارفین” ہے
فی زمانہ خواجہ غریب نواز علیہ الرحمہ کے چاہنے والوں کا برصغیر پاک و ہند اور دیگر ممالک میں ایک ایسا ہجوم ہے جس کا شمار کرنا شاید کے ممکن ہو ,اور ایسے ایسے اور عاشق موجود ہیں کہ آپ رحمتہ اللہ علیہ کے نام پر ہمہ وقت جان و مال قربان کرنے کے لئے مستعد و کمر بستہ رہتے ہیں ,ہزاروں لاکھوں روپے جلسے ,جلوس اور چادروں میں خرچ کرتے ہیں, اور جوش وخروش کے ساتھ “خواجہ کا دامن نہیں چھوڑیں”کا نعرہ لگاتے ہیں, لیکن افسوس بالاےافسوس! کہ انہیں عقیدت مندوں کا حال یہ ہے کہ جب خواجہ پیا کی تعلیمات کو عملی جامہ پہنانے کی باری آتی ہے تو بہت دور نظر آتے ہیں,ان کی روشن تعلیمات سے کوئی شغف ہی نہیں رکھتے, ہمارے قوم کے مقررین حضرات بھی محفلوں میں صرف خواجہ غریب نواز علیہ الرحمہ کے فضائل و کرامات کا تذکرہ کر کے عوام خوش کرتے ہیں الاماشاء اللہ –
تو اس امر کی نہایت ہی سخت حاجت ہے کہ جس طرح آپ رحمتہ اللہ علیہ کے فضائل و کرامات عام اور مشہور ہیں, اسی طرح ان کی موثر تعلیمات کو بھی عام اور مشہور کیا جائے-
ذیل میں چند ایسے گراں قدر اور قیمتی اقوال کو تحریر کیا جاتا ہے جس پر عمل کر کے ہماری دنیا و آخرت دونوں سنور سکتی ہیں- ملاظہ فرمائیں
(۱)خواجہ غریب نواز رحمۃ اللہ علیہ نے متعدد مقامات پر نماز کا تذکرہ اور تاکید فرمائی ,فرماتے ہیں کہ :” کوئی شخص بھی اللہ تعالی کے بارگاہ عزت میں نماز کے بغیر قرب حاصل نہیں کر سکتا کیونکہ مومن کی معراج یہی ہے” (دلیل العارفین اردو ص ۱۵ مطبوعہ ,ضیاء القرآن پبلی کیشنز داتا دربار لاہور)
اور فرماتے ہیں کہ:” جو شخص اللہ تعالی کی فرض نماز ادا نہیں کرتا اللہ تعالی کی حفاظت سے باہر آ جاتا ہے”(ایضاً ص ۱٦)
ایک جگہ فرماتے ہیں “نماز تو پروردگار عالم کی طرف سے تمام بندوں پر امانت ہے اللہ تعالی کی اس امانت کی حفاظت کرنا تمام بندوں پر واجب ہے اور اس طرح ادا کریں کہ کہیں بھی خیانت کا شائبہ نہ ہو ” (ص ۲۵)
ان مقامات کے علاوہ بھی آپ رحمتہ اللہ علیہ نے نماز کی پرزور تاکید فرمائی, اب اگر کوئی آدمی خواجہ پیا سے محبت کا دعویٰ کرے اور نماز سے غافل ہو تو پھر یہ جھوٹا دعویٰ ہے –
(۲) آج لوگ تو اپنے پیر صاحب سے حد درجہ محبت کرتے ہیں, ان کی دل و جان سے تعظیم کرتے ہیں, پیر چومتے ہیں اور ان کے جھوٹوں کو تبرکاً کھاتے ہیں, لیکن پیر صاحب کی نصیحت آموز باتوں کو اپنانے سے محروم رہتے ہیں ,مرید ہوتے وقت جو وعدے کئے تھے ان کے خلاف ورزی کرتے ہیں ,خواجہ غریب نواز علیہ الرحمہ اس کے متعلق فرماتے ہیں کہ:” جس نے بھی کچھ حاصل کیا خدمت ہی سے حاصل کیا, لہذا مرید کے لیے ضروری ہے کہ پیر کے حکم سے ذرہ بھر بھی تجاوز نہ کرے وہ جو نماز, تسبیح اور اوراد و وظائف بتائے ان پر دل و جان سے عمل پیرا ہو” (ایضاً ص ۱٦)
(۳)باوضو سونے کی فضیلت کے بارے میں ارشاد فرماتے ہیں کہ :”جب کوئی آدمی طہارت (وضو) کے ساتھ سوتا ہے تو اس کی روح فرشتے عرش کے نیچے تک لے جاتے ہیں وہاں حکم ملتا ہے, اسے نیا لباس پہنایا جائے, پھر اس کی روح سجدہ کرتی ہے تو حکم ہوتا ہے کہ اسے اب واپس لے جاؤ یہ نیک بندہ ہے جو کہ با وضو سوتا تھا (ص۱۸)

لیکن افسوس! ہے خواجہ غریب نواز کے ان عقیدت مندوں پر جن کو میوزک کے بغیر اور جب تک گندے اور فحاشی فلموں کو نہ دیکھ لے نیند آتی ہی نہیں-
(٤)آپ رحمتہ اللہ علیہ نے ایک حدیث پاک ارشاد فرمائی:” کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے ایک دن شیطان سے پوچھا کہ تم اتنے غمگین کیوں؟ ہو تو جواب دیا کہ تیری امت کے چار کاموں کی وجہ سے ,
ان میں سے دو کو ملاحظہ فرمائیے
(۱) موذنوں کو دیکھ کر پریشان ہو جاتا ہوں کہ جب وہ اذان دیتے ہیں تو جو بھی اذان سنتا ہے تو جواب میں موذن کے الفاظ دہراتے ہیں ,اس طرح کرنے سے اذان دینے والا اور سننے والا دونوں بخشے جاتے ہیں-
(۲)جب کوئی شخص صبح کی نماز ادا کرنے کے بعد طلوع آفتاب تک وہی بیٹھا رہتا ہے اور اشراق کی نفل بھی پڑھتا ہے -(ص۲٠)
لیکن آج لوگوں کا حال یہ ہے کہ اذان کے وقت بھی بحث و مباحثہ, ٹی وی اور گانے باجے چلتے رہتے ہیں, رات دو ,تین بجے تک موبائل اور ٹی وی میں گزارتے ہیں اور فجر کی نماز قضا کر کے دس گیارہ بجے تک بستر پر ہی پڑے رہتے ہیں-
(۵) جو شخص جھوٹی قسم کھاتا ہے وہ اپنے گھروں کو ویران کرتا ہے اس کے گھر سے خیر و برکت اٹھ جاتی ہے (ص۳۳)
اس فرمان سے ان تاجروں کو خاص طور پرعبرت حاصل کرنی چاہیے جو اپنا سامان طرح طرح کی جھوٹی قسمیں کھا کر بیچتے ہیں-
(٦) قبرستان میں ہنسنا قطعی منع ہے ۔ کیوں کہ قبرستان عبرت کی جگہ ہے لہو لعب کا مقام نہیں ہے, حدیث شریف میں ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا جب کوئی شخص قبرستان سے گزرتا ہے تو اہل قبور کہتے ہیں کہ اے غافل! اگر تجھے علم ہوتا کہ کونسا مرحلہ مجھے درپیش ہے تو خوف کےمارے تیرے جسم سے گوشت اور پوست دونوں گر پڑتے،(ص۳۷)

لیکن آج لوگ جب قبرستان سے ہوکر گزر تے یا کسی کو دفنانے کیلئے جاتے ہیں تو وہاں بھی ہنسی, مذاق اوردنیا داری کی باتوں میں مشغول و مصروف ہوجا تے ہیں ، اللہ عزوجل ایسے لوگوں کو عقل سلیم عطا فرمائے ۔
(۷) ایک مسلمان دوسرے مسلمان کو بے وجہ تکلیف و اذیت پہنچائے تو اللہ تعالٰی اور اسکے رسول صلی الہ علیہ وسلم کو اذیت پہونچانے کے مترادف ہے (ص٤۲)

لیکن آج مسلمانوں کے درمیان ایک دوسرے کو تکلیف پہنچانا عام ہو گیا ہے ,کبھی زبان تو کبھی ہاتھ پیر سے دوسرے مسلمان بھائی کو تکلیف پہنچاتے رہتے ہیں-
(۸) “پانچ چیزوں کی طرف دیکھنا بھی عبادت ہے
(۱) ماں باپ کی طرف دیکھنا”پھر ایک حدیث پاک بیان فرمائ کہ :”جو فرزند اپنے والدین کی طرف اللہ تعالی کی رضا کی خاطر دیکھتا ہے اس کے نامہ اعمال میں حج کا ثواب لکھا جاتا ہے” پھر فرمایا کہ حضرت بایزید بسطامی علیہ الرحمہ نے فرمایا:” مجھے یہ ساری ولایت اور سعادت میری ماں کی دعا کی وجہ سے ملی ہے”(ص٤۷)
محترم قارئین!غور کیجئے کہ والدین کی کتنی فضیلت ہے ,وہ شخص کس قدر بے وقوف ہو گا جو اپنے والدین کو تکلیف پہنچائے اور گالی دے, ایسا شخص گویا کہ اپنی دنیا و آخرت دونوں کو برباد کر رہے ہوتے ہیں-
(۲)قرآن کو دیکھنا بھی عبادت ہے ,پھر آپ رحمتہ اللہ علیہ نے فرمایا کہ :”جو شخص قرآن میں دیکھتا ہے یا تلاوت کرتا ہے تو اللہ تعالی اس کے نامہ اعمال میں دو ثواب درج کرنے کا حکم فرماتا ہے ایک پڑھنے کا, دوسرا دیکھنے کا (ص٤۹)

افسوس بالاے افسوس! کہ وہ لوگ جو گھنٹوں گھنٹوں موبائل ,اخبار ,فحش اور فضول گوئی میں نکال دیتے ہیں دن میں ایک بار بھی قرآن پاک دیکھنے اور پڑھنے کی توفیق نہیں ہوتی –
(۳)”اگر کوئی شخص علمائے حق کی طرف دیکھتا ہے تو اللہ تعالی اس کی نگاہوں سے ایک فرشتہ پیدا کرتا ہے جو کہ قیامت تک اللہ تعالی سے اس شخص کی بخشش کی دعا کرتا رہتا ہے” پھر ایک بہت ہی پیاری حدیث پاک بیان کی گئی کہ :”آپ علیہ السلام نے فرمایا:”جو شخص علمائے کرام کی طرف بربنائے عقیدت دیکھتا ہے اور ان کے ساتھ اس کا آنا جانا بھی ہو اور سات دن تک ان کی خدمت کرے تو اللہ تعالی ان کے تمام گناہوں کو معاف کر دیتا ہے اور سات ہزار سال تک نیکیاں اس کے نامہ اعمال میں لکھی جاتی ہے اور وہ نیکیاں بھی ایسی کہ دن کو ہمیشہ روزہ رکھے اور رات کو ہمیشہ قیام کرے “(ص۵۱)
(٤)”خانہ کعبہ کی طرف دیکھنا بھی عبادت(ص۵۲)” “
(۵) “اور پانچویں چیز یہ کہ اپنے پیر کو دیکھنا ان کی خدمت کرنا بھی ایک عبادت ہے(ایضاً)”

اللہ تعالی ہم سب کو خواجہ غریب نواز رحمتہ کی تعلیمات اور فرمودات پر مکمل طور پر عمل کرنے کی توفیق عطافرمائے
اور ان کا فیضان ہمیشہ ہمارے سروں پر قائم عطافرمائے-

آمین بجاہ النبی الامین صلی اللہ علیہ وسلم

خانقاہ برکاتیہ میں یومِ جمہوریہ نہایت ہی تزک و احتشام کے ساتھ منایا گیا… از قلم:::– محمد مجتدیٰ رضا خان احسنی متعلم::- جامعہ احسن البرکات مارہرہ شریف26 جنوری 2023 عیسوی

     *سارے جہاں سے اچھا ہندوستاں ہمارا*
     *ہم بلبلیں ہیں اس کی یہ گلستاں ہمارا*

یومِ جمہوریہ ایک قومی و ملّی دن ہے جسے ملک بھر میں، ہر صوبہ، تمام ضلعے اور تمام اسکول و کالج حتی کہ مدارس اسلامیہ میں بھی یہ تقریبات بہت محبت و لگن سے مناںٔی جاتی ہے۔
اس دن کی اہمیت یہ ہے کہ حکومت ہند ایکٹ جو 1935ء سے نافذ تھا، منسوخ ہوکر باضابطہ دستور ہند کا نفاذ عمل میں آیا، 24 جنوری 1950ء کو ایک مختصر اجلاس میں تمام ارکان نںٔے دستور پر دستخط کیے اور 26 جنوری 1950ء کو اس نںٔے قانون کو لاگو کرکے پہلا یومِ جمہوریہ منایا گیا، اب ہر سال تمام باشندگان ہند 26 جنوری کو یومِ جمہوریہ کے طور پر پورے جوش و خروش اور دھوم دھام کے ساتھ مناتے ہیں ۔
قارئین کرام! آج خانقاہ برکاتیہ کے تحت چلنے والا ادارہ جامعہ احسن البرکات مارہرہ شریف کے وسیع وعریض گراؤنڈ میں ابا حضور حضور رفیق ملت دام ظلہ العالی کی سرپرستی اور حضرت علامہ مولانا عرفان ازہری صاحب قبلہ پرنسپل جامعہ ہٰذا کی صدارت میں یومِ جمہوریہ نہایت ہی تزک و احتشام کے ساتھ منایا گیا۔
اخیر میں ابا حضور حضور رفیق ملت دام ظلہ العالی نے یومِ جمہوریہ کی مناسبت سے کچھ دیر تقریر فرمائی اور اپنے ملفوظات سے تمام حاضرین مجلس کے قلوب کو منور و مجلیٰ فرمایا۔ حضرت نے اپنی تقریر میں فرمایا کہ “بزرگوں کا قول ہے کہ ملک کی محبت ایمان کا حصہ ہوتی ہے” اپنے ملک سے محبت کیجیے۔ ساتھی ہی ساتھ حضرت نے یہ بھی فرمایا کہ ہندوستان ہمارا ملک ہے اللّٰه تعالیٰ کا کرم ہے ہم نے اپنے آباؤاجداد سے وہ سبق لیا ہے کہ اگر ہمارے ملک کی طرف کوئی آنکھ اٹھاکر دیکھے تو ہم اس کی آنکھ نکالنے کی ہمت رکھتے ہیں۔ ہم جب تک زندہ رہتے ہیں اس ملک میں رہتے ہیں اور جب دنیا سے چلے جاتے ہیں تو اس ملک کی مٹی ہمیں اپنے اندر جگہ دیتی ہے ہمیں اپنے آغوش میں سلا لیتی ہے۔ پروگرام کے اختتام پر حضور رفیق ملت حفظہ اللّٰه ورعاہ نے اس ملکِ ہندوستان و تمام حاضرین مجلس بالخصوص ہم تمام طالبان علوم نبویہ کے روشن مستقبل کے لیے خوب دعائیں کیں۔ اور ایک زور دار نعرے کے ساتھ پروگرام کا اختتام فرمایا۔

از قلم:::– محمد مجتدیٰ رضا خان احسنی
متعلم::- جامعہ احسن البرکات مارہرہ شریف
26 جنوری 2023 عیسوی

“جماعت کے ائمہ سے چند تلخ باتیں “خلیل احمد فیضانی

مضمون پورا پڑھیں

سوشل میڈیا پر ابھی قاضی نیپال حضرت مولانا مفتی محمد عثمان برکاتی مصباحی کا ایک مضمون بشکل”پملفٹ” پڑھنے کو ملا- اس مضمون میں آپ نے ائمہ حضرات کی حقیقی پروبلمز کو طشت از بام کیا ہے
میرے خیال سے اماموں کی حد سے متجاوز حمایت بھی ٹھیک نہیں ہے اور ہر مسئلہ کا ذمہ دار امام ہی کو ٹھہرادینا, یہ بھی ٹھیک نہیں ہے بلکہ جادہ اعتدال پر قائم رہ کر ہمیں ہر فریق کے رویوں کا تجزیہ کرنا چاہیے کہ کس مقام پر کمیٹیاں ظلم ڈھا رہی ہیں اور کہاں پر ائمہ حضرات اپنی من مانیاں کرکے تفویض شدہ ذمہ داریوں سے بھی عہدہ بر آ نہیں ہوپارہے ہیں-
میں چاہتا ہوں کہ مسطورہ بالا ان تمام باتوں کی پوائنٹ وائز تفصیل کروں تاکہ قارئین, بالخصوص ائمہ حضرات، قاضی صاحب کی ان باتوں کو بآسانی سمجھ سکیں –

پہلے آپ قاضی صاحب کے کلمات ہو بہو ملاحظہ فرمائیں پھر آگے بڑھتے ہیں-

لکھتے ہیں:
ائمہ کی تنخواہیں بڑھانے پر جتنا زور لگادیجیے کچھ نہیں ہوگا البتہ ائمہ حضرات اپنے اندر تبدیلیاں پیدا کرلیں تو کچھ امید کی جاسکتی ہے

اکثر اماموں میں امامت کی اہلیت کم ہوتی ہے یا نہیں ہوتی ہے جس سے مقدیوں میں محترم نہیں ہوپاتے ہیں
مثلاً 1/۔ کم عمر لڑکوں سے دوستی گانٹھنا
2/ کرکٹ میں دلچسپی رکھنا
3/۔ نمازوں کی پابندی نہیں کرنا
4/۔ اپنی منصبی ذمہ داری کا احساس نہیں کرنا
5/۔ جوکڑ جیسا لباس پہننا
6/ اپنی وضع قطع درست نہیں رکھنا
اپنے بیڈروم میں کتب مسائل کی بجائے صرف شبستان رضا اور نقش سلیمانی رکھنا
7 بغیر تربیت کے منصب امامت پہ بحال ہوجانا
مقتدیوں کے ساتھ وعظ و نصیحت کی بجائے مذاق مسخرہ کرنا وغیرہ وغیرہ بہت ساری کمی کمزوری ہیں آخری ساتویں نمبر کا تو بالکل فقدان ہے اسکول کالج میں بحالی کے لیے گورنمنٹ نے دوسالہ کورس تربیت کا رکھا ہے مدارسِ دینیہ سے نکلنے والوں کے لیے کوئی تربیت نہیں جبکہ قوم کی امامت کہیں زیادہ اہم ہے
عدم تربیت کا نتیجہ ہے کہ کم عمر کم علم ائمہ جگہ جگہ فتنہ فساد بھی پھیلاتے رہتے ہیں نہ درست مسائل بتاتے ہیں اور نہ ہی کسی بڑے عالم سے رابطے میں رہتے ہیں نہ ہی اپنے مقتدیوں کو کسی بڑے عالم سے جوڑتے ہیں جو مشکل وقت میں انکے کام آسکیں اپنے اپنے گاؤں کے خود ہی قطب بن بیٹھتے ہیں
یہ اکثر کی باتیں کیا ہوں سب کی نہیں.۔—
قاضی صاحب کا مضمون یہاں مکمل ہوتا ہے-
اب ہم ان پوانٹس کی قدرے تفصیل کرتے ہیں-
(1) اپنے بیڈ روم میں کتب مسائل کی بجاۓ صرف شبستان رضا اور نقش سلیمانی رکھنا-
یہاں قاضی صاحب نے گویا رستے زخم کے عین اوپر انگلی رکھ دی ہے
ہونا تو یہ چاہیے کہ ایک امام جہاں رہے وہاں علم کی شمع روشن کرکے رکھے مگر آج کل اماموں نے العوام کا الانعام کی نقل کرنی شروع کردی ہے
لوگ اپنے گھروں میں کتابیں نہیں رکھتے تو اماموں نے بھی اپنے حجروں میں کتابیں رکھنی بند کردیں۔۔
یہی وجہ ہے کہ اماموں کے حجروں میں جہاں کتابیں ہونی چاہیے آج وہاں کرتوں پر کرتے،جبوں پر جبے اور دستاروں پر دستاریں لٹک رہی ہوتی ہیں۔

تعویذات کی دو تین کتابیں اورچند عدد کورے کاغذات کے بنڈل ہی ان کی لائبریری کا کل اثاثہ ہوتا ہے-
اور اگر کسی امام کے حجرے میں پانچ دس کتابیں رکھی رہتی بھی ہیں تو گرد و غبار میں اٹی ہوئیں اس قدر مظلومانہ انداز میں کہ چو طرف تار عنکبوت کا حصار رہتا ہے اور یہ حصار زبان حال سے گویا یوں گویا رہتا ہے کہ خبردار امام صاحب!
ہمارے پاس پھٹکنے کی ذرا سی ہمت بھی جو کی-
امام صاحب بھی اس حکم پر سختی سے عمل پیرا رہتے ہیں-
اور جب کبھی اپنے حجرہ خاص کی صفائی کرتے ہیں تو اسی بہانے سے ان پردہ نشینوں(کتابوں) کی بھی زیارت فرمالیتے ہیں-
سنجیدہ مذہبی طبقہ شاکی ہے اس بات کا کہ جمعہ کے بیانات افادہ و استفادہ سے خالی ہوتے ہیں
ہمارے ائمہ کو یہ توفیق بھی نہیں ہوتی ہے کہ ہفتہ بھر میں دس صفحات ہی کا مطالعہ کرلیں اور پھر حاصل مطالعہ کو مرتب کرکے عوام کے سامنے اس سلیقے سے پیش کریں کہ عوام دین سے قریب ہونے لگے –
مگر اس قدر انتظام کی زحمت ہمارے نازک بدن ائمہ کہاں کر پائیں!

بہر حال!ہمارے ائمہ حضرات کو سنجیدگی کے ساتھ اس مسئلہ پر توجہ دینی چاہیے اور دینی کتابوں کے مطالعہ کے لیے وقت نکالنا چاہیے-

(2) کرکٹ میں دلچسپی رکھنا
ہلکی پھلکی جسمانی ورزش کے لیے کرکٹ کھیلا جاسکتا ہے مگر اس کھیل کے پیچھے لٹو ہوجانا اور ipl و دیگر ٹورنامنٹس میں حد سے زیادہ روچی لینا یا خود ہی شریک مقابلہ ہوجانا ایک امام کے لیے تو قطعی طور پر نا مناسب ہے لہذا اس سے اجتناب ہی اولی ہے-
کرکٹ سے عام طور مذہبی افراد کو
دو بڑے نقصانات ہوتے ہیں-:
ایک تو تضییع اوقات،کہ اگر اس وقت کو کسی دینی کتاب کے مطالعے میں صرف کیا جاۓ تو بشرط استقامت چند دنوں میں ڈھیر ساری دینی معلومات حاصل کی جا سکتی ہے-
اور دوسرا نقصان یہ کہ اس سے امام کی نوجوانوں کے ساتھ بلا کی بے تکلفی ہوجاتی ہے –
ظاہر ہے کہ جب سماج کی اساس کہا جانے والا طبقہ یعنی کہ نوجوان، ہی اگر امام صاحب سے بے تکلف ہوجائیں گے تو پھر امام صاحب کی مصلحانہ کاوشیں اور داعیانہ کوششیں کیسے ان پر اثر انداز ہوپائیں گی ۔لہذا احوط یہی ہے اور عافیت بھی اسی میں ہے کہ ایک امام کو اس کھیل سے دور ہی رہنا چاہیے تاکہ وقار مجروح بھی نا ہو اور تبلیغ دین کا فریضہ بھی احسن طریقے سے انجام دیا جاسکے –
3 کم عمر لڑکوں سے دوستی گانٹھنا
ہمارے دین نے ہمیں یہ سکھایا ہے کہ: “اتقوا مواضع التھم”
یعنی تہمت والی جگہوں سے بھی بچو-
کم عمر لڑکوں سے دوستی گانٹھنا اور موٹر سائیکل وغیرہ پر ان کے ساتھ سیر سپاٹے کے لیے نکل جانا امام کے لیے کسی زہر ہلاہل سے کم نہیں ہے-
کسی جنس کا اگر کوئی ایک فرد بدنام ہوتا ہے تو ساری برادری تشکیک کی زد میں آتی ہے
اور ویسے بھی ائمہ حضرات پر بعض علاقوں میں ناقابل بیان الزامات عائد بھی ہوۓ ہیں اور لوگ گھات میں رہتے ہیں کہ امام کب غلطی کرے کہ ہم اس پر چڑھ دوڑیں!
ایسے نازک حالات میں خاص کرکے ایک امام کو کتنا محتاط رہنے کی ضرورت ہے میرے خیال سے محتاج بیان نہیں ہے –
ایک شخص کی حیا شکن حرکتوں کے نتیجے میں لوگ اگر ساری مذہبی برادری سے بلکہ دین سے ہی دور ہوجاتے ہیں تو یہاں محتاط رہنے کی ذمہ داری دوگنی ہوجاتی ہے یہ سوچ کر کہ کہیں میری وجہ سے لوگ دین سے ہی برگشتہ نا ہوجائیں-
اس لیے امام صاحبان سے ہاتھ جوڑ کر گزارش ہے کہ کسی بھی صورت میں نامحرم بچی یا کم عمر لڑکے سے تعلقات استوار نہ کریں۔اور نا ہی انہیں اپنے آپ سے بے تکلف ہونے دیں-
بصورت دیگر فضیحت کے لیے تیار رہنا چاہیے-
(4) اپنی وضع قطع درست نہیں رکھنا
بڑی معذرت کے ساتھ یہ لکھنا پڑرہا ہے کہ آج کل اماموں نے اپنی وضع قطع کی کچھ اس انداز میں قطع و برید کی ہے کہ امام لوگ امام کم اور فیشن کے شیدائی زیادہ نظر آتے ہیں –
قمیص زرق برق اور آستینوں میں مختلف کلرز کا جال اس قدر کہ دیکھ کر آنکھیں چندھیا جائیں
اور پائجامہ چست و تنگ ایسا کہ دیکھنے والا دیکھ کر شرما جائے –

بعض نو خیز ائمہ ڈاڑھی رکھنے میں ایک طرح کی عار محسوس کرتے ہیں
اس لیے وہ خشخشی ڈاڑھی پر ہی اکتفا کرلیتے ہیں
اس غیر شرعی حرکت کی وجہ سے ان کے مقتدیوں میں گروہ بندی ہوجاتی ہے نتیجتا آدھے امام کی حمایت میں کود پڑتے ہیں تو بقیہ آدھے امام کی مخالفت شروع کردیتے ہیں
رژلٹ یہ نکلتا ہے کہ مقتدیوں کے باہمی مجادلوں کے سبب امام کو ہی مستعفی ہونا پڑتا ہے-
لہذا نہایت ضروری ہے کہ ائمہ حضرات نہایت ایمان داری کے ساتھ شرعی خطوط پر گامزن رہیں اور دائیں بائیں کی رنگینیوں سے قطعاً متاثر نا ہوں-
(5)نماز کی پابندی نہیں کرنا
امام جب تک امام ہے تب تک وہ نمازی ہے
تعطیل کے دن جیسے ہی گھر پہنچتا ہے نماز کا شیڈول تقریباً تقریباً اس کی ڈائری سے غائب جاتا ہے-
من اپنا پرانا پاپی تھا برسوں میں نمازی بن نا سکا
یہ ایک بڑا المیہ ہے جو بدقسمتی سے اس گروہ کے اندر بھی در آیا ہے-
کیا ہماری حالت اتنی ابتر ہوچکی ہے کہ ہم نماز جیسی مخفم عبادت بھی چند پیسوں کی خاطر کرتے رہے؟

بعض حضرات (ائمہ)اپنے اوپر غیر ضروری کاموں کا بوجھ اتنا بڑھا لیتے ہیں کہ امام ہوتے ہوۓ بھی ساری نمازیں نہیں پڑھ پاتے ہیں-
کبھی فجر چھوڑدی تو کبھی مغرب میں دعوت اڑانے چلے گئے، اور ذرا تاخیر سے پہنچے تو عشا بھی گئی-.
نائب امام یا ناظرہ خواں مقتدی کب تک امام کی جگہ پر کرتے رہیں گے؟
اس لیے حزم و احتیاط اسی میں ہے کہ امام صاحب خود پہلے پکے نمازی بنیں-
کسی نے کہا کہ ایک کہاوت ہے کہ وہ کون سا امام ہے جو نماز نہیں پڑھتا
لوگ بتا نہیں پاۓ تو پیچھے سے مسجد کا ایک نحیف ونزار مقتدی عصا کے سہارے کھڑا ہوا اور کہا
یہ ہماری مسجد کا امام ہے جو امام ہونے کے باوجود بھی نمازوں کا پابند نہیں ہے
مذکورہ پہیلی مفروضہ زاویوں پر ہی ایستادہ سہی
مگر ہمارے معاشرے کی یہ وہ تلخ سچائی ہے جو
سنجیدہ مزاج اہل علم پر مخفی نہیں-

(6)اپنی منصبی ذمہ داری کا احساس نہیں کرنا
امامت ایک بہت بڑا منصب ہے اس لیے اس منصب کے کچھ تقاضے بھی ہیں
ائمہ حضرات ان تقاضوں کو پورا کرتے ہیں یا نہیں میں نہیں جانتا
مگر گہرائی کے ساتھ تجزیہ کرنے پر حقیقت یہی منکشف ہوتی ہے کہ امام صاحبان اکثر اپنی ذمہ داریوں سے عہدہ بر آ نہیں ہوپاتے ہیں
صرف نماز،نکاح اور جنازہ پڑھانے سے ایک امام بری الذمہ نہیں ہوسکتا
بلکہ ایک کام یاب امام وہ ہے کہ جس کے انڈر میں آنے والے سارے گھر علم و عمل کے گہوارے بن جائیں-
اورامام کو کسی پنچ پٹیل کا ذرا بھی باک نہیں ہونا چاہیے
اس لیے اسے چاہیے کہ لومہ لائم کی پرواہ کیے بغیر حکمت عملی کے ساتھ وہ اپنی بات(مسائل) کو رکھے اور پھر اس کے حل کے لیے کوشاں ہوجاۓ
ایک امام کا انداز خطاب اوراسلوب تخاطب مصلحانہ ہونا چاہیے جارحانہ نہیں
جرح سے معاملات بگڑتے ہیں جب کہ نرمی سے سنگ بھی موم ہوجاتے ہیں-
امام کی ایک منصبی ذمہ داری یہ بھی ہے کہ پہلے وہ اپنے بیانات کو سنجیدگی کے سانچے میں ڈھالےاور پھر بیان کرے
ذاتی مشاہدہ ہے کہ بعض ائمہ جمعہ کے بیان میں اس قدر چیختے چلاتے ہیں کہ سامعین اوبنےلگتے ہیں نتیجہ یہ نکلتا ہے کہ بیان سننے کا پابند مقتدی بھی ناغہ کرنے لگتا ہے-
بہت سارے ائمہ وہی سنے سناۓ قصے
بیان کررہے ہوتے ہیں ۔ان کی تقریروں میں نا تو کوئی علمیت ہوتی ہے نہ ہی کوئی خاص پیغام اور نا ہی قابل اعتنا مواد-
صد بار معذرت کے ساتھ!
یہ مذکورہ سطحیت بڑی اونچی اونچی پگڑیوں والے حضرات کے ہاں بھی دیکھنے کو ملتی ہے
کہ جنہیں ہمہ دانی کا بڑا زعم ہے

(7) بغیر تربیت کے منصب امامت پہ بحال ہوجانا
بہت ساری مسجدوں میں امام صرف حافظ ہوتے ہیں اور اس پر طرہ یہ کہ حافظ صاحب کہیں سے تربیت یافتہ بھی نہیں ہوتے ہیں
اب عوام کے مسائل کون حل کرے گا؟ ان کی صحیح رہنمائی کا فریضہ کون انجام دے گا؟

امامت ایک عظیم منصب ہے
اس لیے ہر ایرے غیرے کو یہ منصب تفویض نہیں کیا جاسکتا
مگر المیہ دیکھیے کہ
جو لوگ مدرسوں میں محنت سے جی چراتے ہیں اور
بالکل کورے ہی نکل جاتے ہیں
ان کی زبانی سننے کو ملتا ہے کہ :کیا ٹینشن! امامت تو مل ہی جاۓ گی-
ایسے لوگ جب عہدہ امامت پر براجمان ہوں گے تو اپنے منصب سے کیا انصاف کریں گے؟
ظاہر ہے اس سراپا مذہبی امانت کا جو مس یوز کریں گے وہ بھلانے کی چیز نہیں ہوگی –
بنا اہلیت اور بغیر تربیت کسی کو امامت یا کوئی بھی عہدہ سپرد کردینا بذات خود قیامت کی نشانی ہے
جس کی نشاندہی حدیث رسول صلی اللہ تعالی علیہ وسلم میں واضح طور پر کر دی گئی ہے-
مصلحین ملت اور ارب علم کے پاس اب دو ہی آپشن بچتے ہیں
یا تو ان غیر تربیت یافتہ لوگوں کا متبادل تلاش کریں اور قوم کو پیش کریں
یاپھر ہچکولے کھاتی قوم کا یہ سفینہ نا اہل ملاحوں کو سپرد کردیا جاۓ تاکہ وہ اسے کسی جزیرے میں لے جاکر گرادے یا بیچ منجدھار میں ہی تہ نشیں کردے اور پھر ہمیں کچھ کرنا نا پڑے-

اخیر میں عرض ہے کہ یہ اکثر کی باتیں کیا ہوں سب کی نہیں-

شکست ناروا !۔۔۔۔۔۔۔از قلم : سید خادم رسول عینی

۔

بزم غوث الورٰی کے دوسویں (انعامی) مشاعرے میں مصرع طرح دیا گیا تھا:

رسول اکرم حبیب داور کا ہر صحیفے میں تذکرہ ہے ۔

یہ مصرع دیکھ کر ایک صاحب نے ہمیں انباکس کیا کہ اس مصرع میں شکست ناروا کا عیب ہے کیونکہ مصرع کے پہلے نصف حصے میں فقرہ ختم نہیں ہوا اور کا پہلے حصے میں آنا چاہیے تھا ۔

بزم تاج الشریعہ کے گزشتہ مشاعرے میں بھی ایک دوسرے صاحب نے شعرا کے چند اشعار پر ریمارک لکھا کہ اس مصرع میں شکست ناروا ہے کیونکہ مصرع کے پہلے نصف حصے میں فقرہ تمام نہیں ہوا ۔

تو آئیے سمجھتے ہیں شکست ناروا کیا ہے ۔شکست ناروا کسے کہتے ہیں ۔شکست ناروا کا اطلاق کن بحروں میں ہوتا ہے۔

معترضین نے جس ترکیب پر اعتراض کیا اور شکست ناروا کا فتوی’ صادر فرمایا ایسی ترکیب استاد شعرا کے اشعار میں بھی ملتی ہے۔مثال کے طور پر امام احمد رضا خان علیہ الرحمہ کا یہ شعر دیکھیں :

نئی دلھن کی پھبن میں کعبہ ، نکھر کے سنورا ، سنور کے نکھرا
حجر کے صدقے، کمر کے اک تل میں رنگ لاکھوں بناؤ کے تھے

اس شعر کے افاعیل ہیں :
مفاعلاتن مفاعلاتن مفاعلاتن مفاعلاتن
اولی’ میں پہلے دو ارکان کعبہ پر ختم ہوگئے
لیکن ثانی میں پہلے دو ارکان تل پر ختم ہوئے۔معترضین کا کہنا ہے کہ پہلے دو ارکان تل میں پر ختم ہونے چاہیے تھے اور چونکہ ایسا نہیں ہوا ایسی ترکیب کو شکست ناروا کہتے ہیں ۔
کیا یہ واقعی شکست ناروا ہے ؟ کیا ایسی ترکیب معائب سخن میں شامل ہے؟ ہر گز نہیں ۔

ڈاکٹر اقبال کا یہ شعر ملاحظہ فرمائیں:
کبھی اے حقیقت منتظر، نظر آ لباس مجاز میں
کہ ہزاروں سجدے تڑپ رہے ہیں مری جبین نیاز میں
اس شعر کے افاعیل ہیں:
متفاعلن متفاعلن متفاعلن متفاعلن
اولی’ میں پہلے دو ارکان منتظر پر ختم ہوگئے
لیکن ثانی میں پہلے دو ارکان رہے پر ختم ہوئے۔
۔معترضین کا کہنا ہے کہ پہلے دو ارکان رہے ہیں پر ختم ہونے چاہیے تھے اور چونکہ ایسا نہیں ہوا ایسی ترکیب کو شکست ناروا کہا جاتا ہے۔
کیا یہ واقعی شکست ناروا ہے؟ کیا ایسی ترکیب معائب سخن میں شامل ہے؟ ہر گز نہیں ۔

تو پھر شکست ناروا کسے کہتے ہیں ؟
شکست ناروا کو سمجھنے کے لیے پہلے دوہا کے ارکان سمجھتے ہیں ، کیونکہ شکست ناروا کا اطلاق دوہا میں ہوتا ہے۔دوہا کے ارکان مندرجہ ذیل ہیں:
فعلن فعلن فاعلن ، فعلن فعلن فاع
استاد گرامی علامہ سید اولاد رسول قدسی کا ایک دوہا ملاحظہ فرمائیں:
اعلیٰ نعمت ہے زباں ، اس کا رکھیے پاس
دیتے ہیں خود کو ضرر ، بے جا قیل و قال
اولی’کی تقطیع یوں ہے:
فعلن۔۔۔۔اعلا
فعلن ۔۔۔۔نعمت
فاعلن ۔۔۔ہے زبا

فعلن۔۔۔اس کا
فعلن ۔۔۔رکیے
فاع۔۔۔۔پاس

اگر اولی’ یوں ہوتا :
اعلیٰ نعمت ہے لب اس کا رکھیے گا پاس
تو اس کی تقطیع یوں ہوتی:
فعلن۔۔۔اعلا
فعلن۔۔۔نعمت
فاعلن ۔۔۔ہے لبس

فعلن۔۔۔کا رک
فعلن ۔۔۔یےگا
فاع ۔۔۔پاس

اس خود ساختہ مصرع میں شکست ناروا ہے کیونکہ بحر کا پہلا نصف حصہ لب اس پر ختم ہورہا ہے ، جب کہ لب پر ختم ہونا چاہیے تھا جیسا کہ علامہ قدسی کے اصل مصرع :
اعلیٰ نعمت ہے زباں ، اس کا رکھیے پاس
میں زباں پر ختم ہورہا ہے اور دوسرے نصف حصے میں ایک مکمل فقرہ اس کا رکھیے پاس آرہا ہے اور دوہا کے اصولوں میں سے ایک اصول ہے کہ فعلن فعلن فاعلن میں مصرع کا ایک فقرہ ختم ہوجانا چاہیے ،اگر ایسا نہیں ہوا تو ایسے مصرع کو عیبی کہا جائےگا اور اس عیب کو شکست ناروا کہا جاتا ہے ۔

مندرجہ بالا مثال سے یہ مزاج ملا کہ شکست ناروا کا اطلاق دوہا کی بحر پر ہوتا ہے اور دوہا میں کل بارہ ارکان ہوتے ہیں:
فعلن فعلن فاعلن، فعلن فعلن فاع
فعلن فعلن فاعلن ، فعلن فعلن فاع

گویا شکست ناروا کا اطلاق بارہ رکنی یا سولہ رکنی یا اس سے زیادہ ارکان والی بحروں میں ہوتا ہے۔
یعنی کہ شکست ناروا کا اطلاق مسدس اور مثمن بحروں میں نہیں ہوتا ۔ علامہ رضا بریلوی اور ڈاکٹر اقبال کے مذکورہ اشعار مثمن بحروں میں ہیں ۔ لہذا شکست ناروا کا اطلاق ان اشعار میں نہیں ہوگا اور یہ دونوں اشعار شکست ناروا عیب سے پاک ہیں ۔

مندرجہ بالا تجزیے سے یہ پتہ چلا کہ شکست ناروا کا اطلاق ان بحروں میں نہیں ہوگا:
مفاعلاتن مفاعلاتن مفاعلاتن مفاعلاتن
متفاعلن متفاعلن متفاعلن متفاعلن
مستفعلن مستفعلن مستفعلن مستفعلن
فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن
فعولن فعولن فعولن فعولن
اور اس قسم کی مثمن بحریں ۔

لیکن مسدس یا مثمن بحروں کو اگر مضاعف کردیں یعنی کہ مسدس کو بارہ رکنی اور مثمن کو سولہ رکنی کردیں تو شکست ناروا کا اطلاق ہوگا ۔یعنی ان بحروں پر شکست ناروا کا اطلاق ہوگا:
فعولن فعولن فعولن فعولن فعولن فعولن فعولن فعولن
فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن
اور اس قسم کی سولہ رکنی یا بارہ رکنی یا اس سے بھی زیادہ ارکان کی بحریں ۔

علامہ ارشد القادری کا یہ شعر دیکھیں:
سامنے جلوہ گر پیکر نور ہو ، منکروں کا بھی سرکار شک دور ہو
کرکے تبدیل اک دن لباس بشر ، دونوں عالم کے سرکار آجائیے ۔
اس شعر کے افاعیل یہ ہیں :
فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن
فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن
یعنی کہ یہ بحر سولہ رکنی ہے۔
علامہ کے شعر کے اولی’ کا تجزیہ کریں ۔ مصرع کا پہلا فقرہ سامنے جلوہ گر پیکر نور ہو بحر کے پہلے نصف حصے میں ختم ہوگیا اور فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن کے وزن پر آگیا ، دوسرا فقرہ منکروں کا بھی سرکار شک دور ہو کا وزن ہے فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن ۔
لیکن اگر اولی’ یوں ہوتا : سامنے‌ جلوہ گر آپ ہوں ، منکروں کا بھی اے میرے سرکار شک دور ہو
اس خود ساختہ مصرع میں پہلا فقرہ سامنے جلوہ گر آپ ہوں کا وزن ہے فاعلن فاعلن فاعلن اور دوسرے فقرے منکروں کا بھی اے میرے سرکار شک دور ہو کا وزن ہے فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن فاعلن ۔چونکہ مصرع کا پہلا فقرہ بحر کے نصف حصے تک نہیں پہنچا اور دوسرے فقرے کا ایک لفظ منکروں پہلے نصف حصے میں ہی رہا ، یہ ترکیب شکست ناروا کے زمرے میں داخل ہوجائےگی اور ایسا مصرع عیب دار ہوگا ، کیونکہ جب اس طویل بحر کی قرأت کرینگے تو مصرع کے پہلے نصف حصے میں وقف لازم ہے، دوہا کی طرح ۔

مندرجہ بالا تجزیے سے یہ ثابت ہوا کہ شکست ناروا کا اطلاق مفاعلاتن مفاعلاتن مفاعلاتن مفاعلاتن بحر پر نہیں ہوگا ۔ لہذا بزم غوث الورٰی میں دیے گیے مصرع رسول اکرم حبیب داور کا ہر صحیفے میں تذکرہ ہے میں شکست ناروا نہیں ہے۔

از قلم : سید خادم رسول عینی

جامعہ احسن البرکات کی قلمی کہکشائیں… از توفیق احسن برکاتی [جامعہ اشرفیہ، مبارک پور، اعظم گڑھ]

علوم وفنون کے فروغ اور انسانی اخلاقیات کے ارتقا میں خانقاہ برکاتیہ [مارہرہ مطہرہ] نے تاریخی کردار ادا کیا ہے، ”آدھی روٹی کھائیے، اپنے بچوں کو پڑھائیے“ جیسا نعرہ اسی خانقاہ نے دیا۔ لیکن یہ مشہور نعرہ کاغذی پیرہن ہرگز نہیں، یہ پانی کا بلبلہ بھی نہیں جو چند سیکنڈوں میں تحلیل ہو جائے اور انسانی دنیا کے لیے اس کی تلاش مشکل ہو۔ یہ نعرہ اس خانقاہ کی زمین اور اربابِ خانقاہ کے دل ودماغ میں پیوست ہے۔ خاندانِ برکات کا تعلیمی مشن قوم مسلم کی ہر محاذ پر کامرانی اور ترقی سے جڑا ہوا ہے۔ اس خانقاہ کے افراد دینی وعصری علوم سے گہری وابستگی رکھتے ہیں، علم وادب ان کی زندگی ہے، اہل علم اور اربابِ فن کی عزت افزائی اور ان کی قدر دانی ان کا شعار ہے، یہی وجہ ہے کہ وقت کے جید علما ومشائخ، اساتذۂ مدارس، مفتیان کرام اور محققین وصاحب تصانیف اشخاص سے روابط استوار رکھتے ہیں اور مختلف جہتوں سے ان کی رہنمائی کرنا اپنا فرض جانتے ہیں۔
سجادگانِ مارہرہ پیری مریدی ضرور کرتے ہیں لیکن ان کا پیشہ تعلیم وتدریس ہے، شعبۂ تعلیم ان کا پسندیدہ شعبہ ہے۔ علی گڑھ جیسے شہر میں البرکات ایجوکیشن سوسائٹی کے وسیع وعریض کیمپس میں جاری مختلف پروفیشنل کورسیز، البرکات ریسرچ انسٹی ٹیوٹ کی مختلف طباعتیں، علی گڑھ شہر میں واقع متعدد مکاتب وجز وقتی مدارس، قصبہ مارہرہ میں مارہرہ پبلک اسکول اور جامعہ احسن البرکات ان حضرات کے تعلیمی مشن کی کامیابی کے نقوش ہیں۔ ان کے علاوہ مجلاتی صحافت میں سال نامہ اہل سنت کی آواز [اردو]اور سہ ماہی پیام برکات [اردو، ہندی] نے نوجوان نسل کو جو انقلابی مزاج بخشا ہے وہ انتہائی اہم اور متاثرکن ہے۔
فقیر برکاتی کئی سالوں سے سالانہ عرس قاسمی میں شرکت کرتا ہے، یہاں جو روحانی انوار اور برکاتی تجلیاں دکھائی دیتی ہیں اور جس اپنائیت کا احساس ہوتا ہے اسے لفظوں میں بیان کرنا ممکن نہیں۔ سجادگان، مخدومان، اساتذہ اور طلبہ جو محبتیں نچھاور کرتے ہیں دنیا کی کوئی انعام یا نعمت ان کا بدل نہیں ہو سکتی۔ ۱۰؍۱۱؍۱۲؍۱۳؍ نومبر ۲۰۲۲ء کو منعقدہ عرس قاسمی میں استاذ گرامی صدر العلماء حضرت علامہ محمد احمد مصباحی، مولانا محمد اختر کمال قادری اور مولانا مقبول احمد مصباحی کے ہمراہ شرکت کی سعادت پائی۔ ۱۲؍ نومبر کی صبح علی گڑھ پہنچے، البرکات کی گاڑی نے ریلوے اسٹیشن سے ریسیو کر لیا، کیمپس آئے،فجر کی اذان ہوئی تو کچھ ہی دیر میں مسجد میں لگی صفوں پر نوجوان نمازیوں کی کہکشاں اتر آئی، یہ البرکات میں زیر تعلیم دس سے اٹھارہ سال کے بچے تھے۔ نماز کے بعد تھوڑا آرام کیا گیا، پھر ناشتہ ہوا اور مارہرہ روانگی ہوئی۔ آج پہلی بار پورا کیمپس دیکھا، مختلف تعلیمی شعبوں کا معائنہ کیا، البرکات ریسرچ انسٹی ٹیوٹ کی شاندار عمارت دیکھی، یہاں کے پرنسپل مولانا محمد نعمان ازہری سے ملاقات ہوئی، مولانا سلمان رضا علیمی سے گفتگو ہوئی، مولانا محمد حسن علیمی کی معیت میں اس شہرستانِ علم وفن کی جلوہ زیبی کا دیدار ہوتا رہا اور دل فخر کے سمندر میں غوطے لگاتا رہا، واقعی خانقاہ برکاتیہ کے ذمہ داران نے امت مسلمہ کے سر سے ایک اہم قرض اتار دیا ہے۔ اللہ عزوجل اس علمی چمن کی حفاظت فرمائے۔
ہم لوگوں کی مارہرہ حاضری ایک خادم کی حیثیت سے ہوتی ہے، یہاں کی مٹی سے دل کی ارادت وابستہ ہے، لیکن جامعہ احسن البرکات کے اساتذہ اور طلبہ جو والہانہ کارِ میزبانی انجام دیتے ہیں وہ ہر خادم کو مخدوم بنا دیتے ہیں۔ مخدوم گرامی حضرت مولانا سید محمد امان میاں اور رفیق ملت حضرت سید شاہ نجیب حیدر برکاتی دام ظلہ العالی بنفس نفیس باہر سے تشریف لانے والے علما ومشائخ سے ملاقات کرنےاور ان کے احوال دریافت کرنے بیت العلماء پہنچ جاتے ہیں۔ یہاں کے کئی اساتذہ اور بہت سے طلبہ راقم کو پہچانتے ہیں، چند بچوں کی خواہش پر محب گرامی ڈاکٹر محمد حسین مشاہد رضوی کے ہمراہ ۱۳؍ نومبر کی صبح جامعہ احسن البرکات جانا ہوا، جامعہ کی بلڈنگ کا تعلیمی جلال اور روحانی جمال دلوں میں اتر گیا، اس کی تعلیمی ہلچل اور قلمی گہماگہمی کا منہ بولتا ثبوت دیواروں پر آویزاں چار زبانوں کے اٹھارہ جداریے تھے جن کی تصویریں ہم نے موبائل میں قید کر لیں تاکہ اشرفیہ واپسی کے بعد ان کا مطالعہ کیا جائے۔ وہ تمام تحریریںاس وقت راقم کے سامنے ہیں، انتہائی کم مدت میں جامعہ کے باذوق اساتذہ کی محنتوں اور مخلص منتظمین کے کمالِ انتظام نے یہاں کا تعلیمی معیارہی اونچا نہیں کیا، بلکہ اخلاقی تربیت اور تحریری مشق نے طلبہ کو بھی الگ شناخت دی ہے۔
کل اٹھارہ جداریوں میں ایک عربی، ۹؍ اردو، ۲؍ ہندی، ۲؍ انگریزی زبان میں ہیں، ان کے علاوہ چار جداریے ”آئینہ جامعہ “ کے نام سے خانقاہ برکاتیہ اور جامعہ احسن البرکات کے مختلف تربیتی اور تعلیمی پروگراموں کی روداد پر مشتمل ہیں۔
اجمالی خاکہ یوں دیا جاسکتا ہے:
(۱) ماہ نامہ نوری کرن کا اعلیٰ حضرت نمبر [اردو]
[۱] اعلیٰ حضرت ایک عظیم سائنس داں (سرور رضا، خامسہ)
[۲] اعلیٰ حضرت اور احترامِ ساداتِ مارہرہ ( برکت علی برکاتی، سادسہ)
[۳] اعلیٰ حضرت کے چند حیرت انگیز واقعات ( محمد حسان، رابعہ)
(۲) ماہ نامہ نوری کرن کا سادات صغروی نمبر[اردو]
[۱] حضرت نوری میاں، حیات اور کارنامے (محمد ثاقب نانپاروی، سابعہ)
[۲] مارہرہ مطہرہ اور مسولی شریف کا روحانی رشتہ (محمد عالم اسماعیلی، ثامنہ)
[۳]حضرت تاج العلماء اور تقسیم وطن (محمد ارقم مرادآبادی، سادسہ)
( ۳) ماہ نامہ جام حسن کا احسن العلماء نمبر[اردو]
[۱] حضور احسن العلماء کا تصلب فی الدین (محمد ہاشم برکاتی، ثامنہ)
[۲]کرامات حضور احسن العلماء (محمد فرمان رضا، سابعہ)
[۳] حضور احسن العلماء ایک تعارف (شعیب رضا، سادسہ)
(۴) ماہ نامہ جام حسن، ستمبر۲۰۲۲ء[اردو]
[۱] حضور شارح بخاری اور مشائخ مارہرہ مطہرہ (محمد منتصر، ثامنہ)
[۲] انگریزی پڑھنے سے تقدیر سے زیادہ نہیں ملتا (محمد مبتدیٰ، سادسہ)
(۵) جام برکات[اردو]
[۱] حضور صاحب البرکات کی نصیحتوں کی عصری معنویت (محمد ایاز، خامسہ)
[۲] حضور ستھرے میاں، ایک تعارف (تنزیل احمد برکاتی، خامسہ)
[۳] موجودہ سجادگانِ مارہرہ کی علمی خدمات ()
(۶) برکات حسن[اردو]
[۱] شاہ برکت اللہ مارہروی حیات اور علمی کارنامے (محمد عمران، رابعہ)
[۲] میر سید عبدالجلیل بلگرامی، ایک تعارف (محمد حسان رضا، رابعہ)
[۳] حضور سیدنا ابوالحسین احمد نوری، شخصیت اور کارنامے (مرتضیٰ محمود، رابعہ)
(۷) تاج حسن[اردو]
[۱] قطب مارہرہ حضرت سید آل محمد قادری علیہ الرحمہ (محمد اویس برکاتی)
[۲] حضرت سیدنا فضل اللہ کالپوی علیہ الرحمہ (محمد محسن رضا)
[۳] علی گڑھ میں حضور امین ملت کی تعلیمی خدمات (محمد شعیب برکاتی)
(۸) رضاے آل رسول[اردو]
[۱] اعلیٰ حضرت امام احمد رضا اپنے مرشد کی بارگاہ میں (محمد رضوان، گونڈہ)
(۹) گلشن عینی[اردو]
[۱] حضور تاج العلماء ایک تعارف (محمد سلیم رضا واحدی)
[۲] اقطاب سبعہ تعارف و محل مزار (محمد قاسم رضا امانتی)
[۳] حضور سیدالعلماء مختصر سوانح (محمد ارمان رضا)
(۱۰) البرکات [عربی]
[۱]اخلاص النیۃ فی الاعمال والاقوال (محمد ہاشم رضا، ثامنہ)
[۲] الدعاء واسباب استجابتہ (محمد ارقم، سادسہ)
(۱۱) برکاتی فیضان [ہندی]
(۱۲) برکاتی سندیش [ہندی]
(۱۳) احسنی ٹائمز [انگلش، دو جداریے]
(۱۴)آئینہ جامعہ [اردو، چار جداریے]
یہ تمام مضمون نگار اور ان کے نگراں اساتذہ بالخصوص صدرالمدرسین مولانا محمد عرفان ازہری، مفتی اسلم نبیل ازہری، مولانا محمد شاداب امجدی، مولانا غلام علی فیضی، مولانا اشرف نہال مصباحی، مولانا نظام الدین ثقافی، مولانا سراج احمد علیمی، مفتی عمار خان شامی، مولانا انیس القمر امجدی، مولانا محمد قاسم علیمی وغیرہم فقیر برکاتی کی جانب سے خصوصی مبارک بار کے مستحق ہیں، اللہ عزوجل اساتذہ کی شفقتوں اور طلبہ کی محنتوں کو قبول فرمائے اور سب کو اپنے حفظ وامان میں رکھے، آمین۔
جامعہ احسن البرکات نے انتہائی مختصر سی مدت میں جو تعلیمی عروج حاصل کیا ہے اور یہاں کے طلبہ جس باکمال تربیت سے مالامال ہو رہے ہیں وہ متاثرکن اور انتہائی اہم ہے، اس میں حضرت رفیق ملت دام ظلہ العالی کی ناصحانہ اور مشفقانہ فہمائشوں اور دیگر ذمہ داروں کی تعلیم وتربیت کا بہت دخل ہے، اللہ عزوجل اس چمن کو ہرا بھرا رکھے اور مزید علمی ارتقا بخشے، آمین۔

چھبیس جنوری ہے۔۔۔۔۔۔از: سید خادم رسول عینی

یارو خوشی مناؤ چھبیس جنوری ہے
اک گیت کوئی گاؤ چھبیس جنوری ہے

اس روز ہی سجا تھا اپنے چمن میں قانون
سب گل کو یہ بتاؤ چھبیس جنوری ہے

جس نور سے ملا ہے ہر ایک کو اجالا
اس نور میں نہاو چھبیس جنوری ہے

جو خار بن کے گل کا نقصان کررہے ہیں
مت دینا ان کو بھاؤ چھبیس جنوری ہے

ہے یہ بہت نرالا اور سب سے اعلیٰ ، اپنی
تہذیب کو بچاؤ چھبیس جنوری ہے

اس دن سے ہی ہوا تھا جمہوریت کا آغاز
جمہور کو بتاؤ چھبیس جنوری ہے

جو ہیں شہید ان کو کر کے خراج تم پیش
گلدستوں سے سجاؤ چھبیس جنوری ہے

عشاق جس کو سن کر ہوجائیں خوب مسحور
تم وہ ترانہ گاؤ چھبیس جنوری ہے

جھنڈے کو دو سلامی لہراؤ مع مسرت
خوشیوں کے گل کھلاؤ چھبیس جنوری ہے

بھارت میں تم ہو یا ہو بیرون ملک میں بھی
ہر جا اسے مناؤ چھبیس جنوری ہے

جس حق کا سب سے وعدہ تم نے کیا تھا عینی
سب کو وہ حق دلاؤ چھبیس جنوری ہے
۔۔۔۔
از: سید خادم رسول عینی

برادرانِ وطن کے نام:یوم جمہوریہ کاپیغام… از:محمّدشمیم احمدنوری مصباحی خادم:دارالعلوم انوارِ مصطفیٰ سہلاؤشریف،باڑمیر (راجستھان)

       بلاشبہ وطن عزیز [ہندوستان] کی تاریخ میں دو دن بہت ہی اہمیت کے حامل ہیں, ایک 15اگست [یوم آزادی]جس دن ہمارا ملک انگریزوں کی غلامی سے آزادہوا, دوسرا 26جنوری[جسے یوم جمہوریہ یا ری پبلک ڈے Republic Day یا گن تنتر دِوس کہا جاتا ہے] جس دن ملک جمہوری ہوا, یعنی اپنےملک میں اپنےلوگوں پراپناقانون لاگو ہوا-
     آزادہندوستان کااپنادستور بنانے کےلیےڈاکٹر بهیم راؤ امبیڈکرکی صدارت میں29اگست 1947کو سات رکنی کمیٹی تشکیل دی گئی تھی، جس کوملک کاموجوده دستورمرتب کرنےمیں 2سال 11ماه اور18دن لگے، دستورسازاسمبلی کےمختلف اجلاس میں اس نئےدستورکی ہراک شق پر کهلی بحث وتمحیص ہوئی،پھر 26 نومبر1949کواسےقبول کرلیاگیا، اور24جنوری 1950 کوایک مختصر اجلاس میں تمام ارکان نےنئےدستور پردستخط کیا, اور 26جنوری 1950 کو اس نئےقانون کولاگوکرکے پہلا "یوم جمہوریہ” منایاگیا،[اسی دستور اور آئین کی بنیاد پر اپنے ملک کو جمہوری ملک کہاجاتاہے]اب ہرسال تمام باشندگانِ ہند وبرادرانِ وطن 26جنوری کو "یوم جمہوریہ" کے طور پرپورے جوش وخروش اور دھوم دھام کے ساتھ مناتے ہیں اور15اگست 1947کی طرح یہ تاریخ بهی ملک کا قومی اوریادگاری دن بن گئی-

       26جنوری کوجشن کےطور پہ کیوں مناتے ہیں؟ توآئیے تاریخ کے اوراق کامشاہدہ کرتےچلیں، جشن کایہ دن ہندوستانیوں کو یونہی نہیں ملا،اس کےلیےبڑی بڑی قربانیاں دینی پڑیں،لاکھوں جانوں کےنذرانےپیش کرنے پڑے،تب جاکر 26جنوری کو جشن منانے کایہ زریں موقع ہندوستانیوں کو نصیب ہوا، انگریزوں کاپہلاقافلہ1601 میں دورجہانگیری میں ہی ہندوستان آیاتها،اس حساب سے ہندوستان سےانگریزوں کاانخلاء 1947میں 346سال بعد ہوا، اس دوران ظلم وبربریت کی ایک طویل داستان لکھی گئی جس کاہرصفحہ ہندوستانیوں کےخون سے لالہ زارہے، جذبۂ آزادی سےسرشار اورسرپرکفن باندھ کروطن عزیز اوراپنی تہذیب وتمدن کی بقاء کےلیے بےخطر آتش افرنگی میں کودنے والوں میں جہاں ہمارے دیگر برادارنِ وطن نے حصہ لیا وہیں مسلمان کسی سے پیچھے نہیں رہے بلکہ مسلمان سب سے پیش پیش تھے،جنگ آزادی میں مسلمانوں کی قربانیاں اگر الگ کردی جائیں توہندوستان کی آزادی کی تاریخ کبھی مکمل ہی نہ ہوگی،بہرحال 26جنوری 1950 میں ہندوستان نے اپنے لیے جو دستور مقرر کیا اس کے آغاز میں ہی ایک بہت ہی خوبصورت جملہ لکھا گیا ہے”ہم ہندوستانی عوام تجویز کرتے ہیں کہ انڈیا ایک آزاد، سماجوادی، جمہوری ہندوستان کی حیثیت سے وجود میں لایا جائے جس میں تمام شہریوں کے لئے سماجی، معاشی،سیاسی،انصاف،آزادئِ خیال، اظہاررائے،آزادئِ عقیدہ ومذہب وعبادات،مواقع اور معیار کی برابری، انفرادی تشخص اور احترام کو یقینی بنایا جائے اور ملک کی سالمیت ویکجہتی کو قائم ودائم رکھا جائے گا"

   یقیناً دستور ہند کی سب سے اہم اور خاص بات یہ ہے کہ اس میں ملک کے تمام مذاہب و نظریات رکھنے والوں کو اس بات کی مکمل آزادی حاصل ہے کہ وہ ملک میں اپنے اپنے مذہب پر عمل کر سکتے ہیں، اپنےجائز افکار و نظریات کی تبلیغ وترسیل کر سکتے ہیں، اپنے تشخصات و روایات کے ساتھ ملک میں اطمینان و سکون کے ساتھ زندگی گزار سکتے ہیں، اپنی زبان، تہذیب، کلچر و ثقافت پر عمل کرنے میں مکمل آزاد ہیں،کسی کو بھی یہ حق حاصل نہیں کہ وہ کسی کے مذہب، اس کی تہذیب، زبان اور ثقافت سے چھیڑچھاڑ کرے، اس کے مذہبی مقامات کو نشانہ بنائے یا اس کے پرسنل لا سے چھیڑچھاڑ کرے،اس اعتبار سے "ھندوستانی جمھوری نظام" ایک بہترین نظام ہے، اس میں مختلف افکار و خیالات اور تہذیب و تمدن کے لوگ بستے ہیں،ہندوستان ایک ایساجمہوری ملک ہے جہاں مختلف زبان، مذاہب،ذات،رنگ ونسل اور رسم ورواج کے چاہنے والے رہتے ہیں،صدیوں سے یہاں گنگا جمنی تہذیب وتمدن کی فضا رچی بسی ہے،دوستی، محبّت،بھائی چارگی، یکجہتی،مساوات واخوت یہاں کی خاص پہچان ہے، 26 جنوری کو اسی دستور و آئین کی تائید میں اور کثیر المذاہب ملک ہونے کے باوجود باہمی یکجہتی اور میل جول کے اس عظیم ملک ہندوستان کی جمہوریت پر ناز کرنے کے لیے "جشن یوم جمہوریہ" مناکر ملک کی آزادی کی خاطر اپنی جانوں کا نذرانہ پیش کرنے والے جانبازوں اور ملک کے آئین کے بانی و مرتبین کو بہترین خراج عقیدت پیش کی جاتی ہے،اور اس دن پورے ملک میں ہر جگہ سرکاری چھٹی رہتی ہے اور تعلیم گاہوں اور سرکاری اداروں میں "جشن یوم جمہوریہ" کا پروگرام منعقد کی جاتی ہے،تمام صوبوں میں مرکزی مقامات پر تقاریب کاانعقاد کیاجاتاہے،اور ساتھ ہی ساتھ ثقافتی پروگرام کا بھی اہتمام ہوتاہے،لوگ جوق درجوق گھروں سے باہر آجاتے ہیں،مدارس اسلامیہ،اسکول، کالج،چوراہوں، سرکاری ونجی عمارتوں پرقومی پرچم لہرائے جاتے ہیں،رہائشی علاقوں،ثقافتی اداروں اور معاشرتی انجمنوں کے زیراہتمام تفریحی پروگرام تو انتہائی شاندار طریقے سے منائے جاتے ہیں،مساجد ومدارس میں ملک وقوم کی ترقی وخوشحالی اور آپسی بھائی چارہ، نیز بھٹکے ہوئے لوگوں کو راہِ راست پر آنے کی توفیق اور سلامتی کے لیے دعائیں مانگی جاتی ہیں، حبّ الوطنی پر مشتمل ترانے پڑھےجاتے ہیں، راشٹریہ گیت گایا جاتا ہے،سیکولرازم کے عنوان پر بیانات ہوتے ہیں،اور ہمارے مفکرین ودانشوران اس بات پر زور دیتے ہیں کہ ہندوستان میں جمہوریت کی بقا رہنی چاہیے، ہر ہندوستانی کو اپنے مذہب اور عقیدہ کی مکمل آزادی ہونی چاہیے، سب کو رہنے اور کھانے پینے کا مکمل اختیار ہونا چاہیے، ہر ہندوستانی کو ہندوستان کا ایک شہری ہونے کے ناطے جو سہولیات ملنی چاہیے اسے ان کو حکومتی سطح پر دیاجانا چاہییے،خصوصاً اقلیتوں کے ساتھ انصاف، ہندو مسلم سکھ عیسائی اور ہندوستان کے تمام دوسرے مذاہب کے ماننے والوں کو آپس میں اتحاد و اتفاق اور اخوت و بھائی چارگی کے ساتھ رہنا چاہیے، ملک کی حفاظت اور اِس کی ترقی کے لیے سبھی بردران وطن کو بھرپور کوشش کرنی چاہیے-ہم سبھی لوگوں کو ملک کے آئین ودستور کا پاس ولحاظ رکھنا چاہییے،مگر پچھلے کچھ سالوں سے ملک میں ایک خاص فکر کے حاملین برادران وطن نے جس طرح ملک کے دستور کی دھجیاں اڑائی ہیں، اقلیتوں بالخصوص مسلمانوں کے مذہبی مقامات کو نشانہ بنایا ہے، فرقہ پرستی کو فروغ دیا ہے، مذہب اور دھرم کے نام پر جو سیاسی کھیل کھیلا ہے، فرقہ وارانہ فسادات میں جس طرح حکومت کی پشت پناہی میں مسلمانوں کا قتل عام کیا ہے اور اب مسلمانوں کے مذہبی مسائل اور عائلی قوانین میں جس طرح مداخلت کرتے ہوئے اسے تبدیل کرنے کی کوشش کر رہے ہیں اس سے معلوم ہوتا ہے کہ ملک میں اب باقاعدہ جمہوریت ہی باقی نہ رہی، ایک خاص فکر کے حاملین نے ملک کی جمہوریت کو اپنے خونی پنجوں سے جس طرح دبوچ لیا ہے اور آئے دن ملک کے جمہوری تقدس کو پامال کر رہے ہیں اس سے صاف معلوم ہو رہا ہے کہ ان کے ارادے نیک نہیں، یہ جمہوریت کے دشمن ہیں، آئین کے قاتل ہیں، دستور کے لٹیرے ہیں، یہ لوگ بڑی بے باکی کے ساتھ اپنے منصوبوں کو کامیاب بنانے میں شب و روز تگ و دو کر رہے ہیں، حکومت جو جمہوریت کی محافظ ہے وہ بھی جمہوریت کے ان لٹیروں کا ساتھ دے رہی ہے ایسے میں ضروری ہے کہ تمام برادران وطن مل کر ان چند فرقہ پرستوں کے خلاف اور فرقہ پرستوں کا ساتھ دینے والی حکومت کے خلاف جمہوریت کی بقا اور آئین کی سلامتی کے لیے متحدہوکرانہیں ان کے منصوبوں میں ناکام بنائیں، تاکہ ہم فخر سے کہہ سکیں کہ ہم دنیا کے سب سے بڑے جمہوری ملک میں رہتے ہیں، اور یوم جمہوریہ مناتے ہوئے خوب خوب خوشی ومسرت محسوس کریں-

   اس بار ہم 74 واں یوم جمہوریہ منارہے ہیں، اور ساتھ ہی ساتھ پورے ملک کے مدارس،کالجز،اسکول ودفاتر میں بھی انتہائی شان وشوکت اور جوش وخروش کے ساتھ”جشن یوم جمہوریہ”منایا جائے گا،کاش کہ اس جشن زریں کے موقع پر حکمرانوں کے ذریعہ آئین کے تحفظ اور جمہوری اقدار کی بقا کو مقدم رکھنے کا حلف لیا جاتا اور اس پر عمل بھی کیا جاتا، نفرت بھرے ماحول کو امن وآشتی،اخوت و بھائی چارہ سے بدلنے کی بات کی جاتی، مساویانہ آئینی حقوق کو یقینی بنایا جاتا، ملک دشمن عناصر کو کیفر کردار تک پہنچانے میں امتیاز نہیں برتا جاتا، گنگا جمنی تہذیب کی لاج رکھی جاتی، اقلیتوں خصوصاً مسلمانوں کے خلاف آگ اگلنے والی زبانوں پرلگام لگایا جاتا گئورکچھا کے نام پر بے قصور مسلمانوں کو موت کے گھاٹ اتارنے والوں کو طوق سلاسل پہنایا جاتا،لوجہاد اور گھر واپسی کے نام پر آتنک کاراج قائم کرنے والوں کو تختۂ دار تک پہنچایا جاتا، "سب کا ساتھ سب کا وکاس” کے نعرہ کو سب کے لئے عملی جامہ پہنایا جاتا، تو "یوم جمہوریہ” کے معماروں کےلیے یہی سچی خراج عقیدت ہوتی!